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रहस्य भावना एक विश्लेषण
193 पुष्पों की क्यारियां मधु के एक-एक कण में निवास करती हैं, उसी प्रकार सन्त सम्प्रदाय का दर्शन अनेक युगों और साधकों की अनुभूतियों का समुच्चय है। जैन और जैनेतर रहस्य भावना में अन्तर
उपर्युक्त संक्षिप्त विवेचना से हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि जैन और जैनेतर रहस्य भावना में निम्नलिखित अन्तर है -
___ (१) जैन रहस्य भावना आत्मा और परमात्मा के मिलने की बात अवश्य करता है पर वहां आत्मा से परमात्मा मूलतः पृथक् नहीं। आत्मा की विशुद्धावस्था को ही परमात्मा कहा जाता है जबकि अन्य साधनाओं में अन्त तक आत्मा और परमात्मा दोनों पृथक् रहते हैं। आत्मा और परमात्मा के एकाकार होने पर भी आत्मा परमात्मा नहीं बन पाता। जैन साधना अनन्त आत्माओं के अस्तित्व को मानता है पर जैनेतर साधनाओं में प्रत्येक आत्मा को परमात्मा का अंश माना गया है।
(२) जैन रहस्य भावना में ईश्वर को सुख-दुःख दाता नहीं माना गया। वहां तीर्थंकर की परिकल्पना मिलती है जो पूर्णतः वीतरागी और आप्त है। अतः उसे प्रसाद-दायक नहीं माना गया। वह तो मात्र दीपक के रूप में पथ-दर्शक स्वीकार किया गया है। उत्तरकाल में भक्ति आन्दोलन हुए और उनका प्रभाव जैन साधना पर भी पड़ा। फलतः उन्हें भक्तिवश दुःखहारक और सुखदायक के रूप में स्मरण किया गया है। प्रेमाभिव्यक्ति भी हुई है पर उसमें भी वीतरागता के भाव अधिक निहित हैं।
(३) जैन साधना अहिंसा पर प्रतिष्ठित है। अतः उसकी रहस्य भावना भी अहिंसा मूलक रही। षट्चक्र, कुण्डलिनी आदि जैसी