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________________ रहस्य भावना एक विश्लेषण 191 बनारसीदास को अध्यात्म के बिना परम पुरुष का रूप ही नहीं दिखाई देता। उसकी महिमा अगम और अनुपम है। वसन्त का रूपक लेकर कविवर ने पूरा अध्यातम फाग लिखा है। सुमति रूपी कोकिला मधुर संगीत गा रही है, मिथ्याभ्रम रूपी कुहरा नष्ट हो गया है। माया रूपी रजनी का स्थितिकाल कम हो गया, मोहपंक घट गया, संशय रूपी शिशिर समाप्त हो गया, शुभ दल पल्लव लहलहा पडे, अशुभ पतझर प्रारम्भ हो गई, विषयरति मालती मलिन हो गई, विरति वेलि फेल गई, विवेक शशि निर्मल हुआ आत्मशक्ति सुचन्द्रिका विस्तृत हुई, सुरति-अग्निज्वाला जाग उठी, सम्यक्त्व-सूर्य उदित हो गया, हृदय-कमल विकसित हो गया, धारणा-धारा शिव-सागर की और वह चली, नय पंक्ति चर्चरी के साथ ज्ञानध्यान डफ का ताल बजा, साधनापिचकारी चली, संवरभाव-गुलाल उड़ा, दया-मिठाई, तपमेवा, शील-जल, संयम-ताम्बूल का सेवन हुआ, परम ज्योति प्रगट हुई, होलिका में आग लगी, आठ काठकर्म जलकर बुझ गये और विशुद्धावस्था प्राप्त हो गई। ___ अध्यात्मरसिक बनारसीदास आदि महानुभावों के उपर्युक्त गम्भीर विवेचन से यह बात छिपी नहीं रही कि उन्होंने आध्यात्मवाद और रहस्यवाद को एक माना है। दोनों का प्रस्थान बिन्दु, लक्ष्य प्राप्त तथा उसके साधन समान हैं, दोनों शान्त रस के संवाहक हैं। अतः हमने यहां दोनों को समान मानकर चिन्तन यात्रा की है। “गूंगे का सा गुडै" की इस रहस्यानुभूति में तर्क अप्रतिष्ठित हो जाता है - 'कहत कबीर तरक दुइ साधै तिनकी मति है मोटी' और वाद-विवाद की ओर से मन दूर होकर भगवद् भक्ति में लीन हो जाता है। उसकी अनुभूति साधक की आत्मा ही कर सकती हैं । रूपचन्द ने इसी को 'चेतन अनुभव घट प्रतिमास्यों', चेतन अनुभव धन मन
SR No.022771
Book TitleHindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushplata Jain
PublisherSanmati Prachya Shodh Samsthan
Publication Year2008
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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