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रहस्य भावना एक विश्लेषण
185 संस्कृति की कुछ शाखाओं ने भी इस संदर्भ में प्रश्न चिन्ह खड़े किये हैं। इसके बावजूद वहां हम रहस्य भावना पर्याप्त रूप में पाते हैं। अतः उपर्युक्त मत को व्याप्ति के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता।
बौद्ध दर्शन में आत्मा के अस्तित्व को अव्याकृत से लेकर निरात्मवाद तक चलना पड़ा। ईश्वर को भी वहां सृष्टि का कर्ता, हर्ता
और धर्ता नहीं माना गया। फिर भी पुनर्जन्म अथवा संसरण से मुक्त होने के लिए व्यक्ति को चतुरार्य सत्य का सम्यग्ज्ञान होना आवश्यक है। उसकी प्राप्ति के लिए प्रज्ञा, शील और समाधि ये तीन साधन दिये गये हैं। इतर साधनों के माध्यम से चित्त (आत्मा ?) अन्तोगत्वा बुद्धत्व की प्राप्ति कर लेता है। आगे चलकर महायानी साधना अपेक्षाकृत अधिक गुह्य बन गई। उसने हठयोग और तांत्रिक साधना को भी स्वीकार कर लिया। महायान का शून्यवाद पूर्ण रहस्यवादी-सा बन जाता है। कबीर आदि कवियों पर भी बौद्ध धर्म का प्रभाव दिखाई देता हैं । समूची बौद्ध साधना का पर्यालोचन करने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि आत्मा, चित्त अथवा संस्कार को बुद्धत्व में मिला देने की साधना प्रक्रिया के रूप में रहस्य भावना बौद्ध साधकों में भली भांति रही है।
जैन रहस्य भावना
साधारणतः जैनधर्म से रहस्य भावना अथवा रहस्यवाद का सम्बन्ध स्थापित करने पर उसके सामने आस्तिक नास्तिक होने का प्रश्न खड़ा हो जाता है। परिपूर्ण जानकारी के बिना जैनधर्म को कुछ विद्वानों ने नास्तिक दर्शनों की श्रेणी में बैठा दिया है, यह आश्चर्य का विषय है। इसी कल्पना पर यह मन्तव्य व्यक्त किया जाता है कि