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________________ हिन्दी जैन साहित्य में रहस्यभावना ३. क्लेशक्षय पाने पर जन्म-मृत्यु से मुक्त होना, और ४. . जन्म मृत्यु से मुक्त होने पर कैवल्यावस्था प्राप्त होना । वेद और उपनिषद् के बाद गीता, भागवत् पुराण, शाण्डिल्य भक्ति सूत्र और नारद भक्तिसूत्र वैदिक रहस्यवादी प्रवृत्तियों के विकासात्मक सोपान कहे जा सकते हैं । 'तत्त्वमसि, सोऽहं, अहं ब्रह्मास्मि' जैसे उपनिषद् के वाक्यों में अभिव्यक्त विचारधारा उत्तरकालीन संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश और हिन्दी साहित्य को प्रभावित करती हुई आगे बढ़ती है। सिद्ध सम्प्रदाय और नाथ सम्प्रदाय का रहस्यवाद यद्यपि अस्पष्ट सा रहा है पर उसका प्रभाव भक्तिकालीन कवि कबीर, दादू और जायसी पर पड़े बिना न रहा। ये कवि निर्गुणवादी भक्त रहे । सगुणवादी भक्ति कवियों में मीरा, सूर और तुलसी का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। इनमें मीरा और सन्त कवियों की रहस्य भावना में कोई विशेष अन्तर नहीं । तुलसी की रहस्य भावना में दाम्पत्य भावना इतनी गहराई तक नहीं पहुंच पाई जितनी जायसी के कवि में मिलती है। रीतिकाल में आकर यह रहस्य भावना शुष्क-सी हो गई। आधुनिक काल में प्रसाद पन्त निराला और महादेवी जैसी कवियों में अवश्य वह प्रस्फुटित होती हुई दिखाई देती है जिसे आलोचकों ने रहस्यवाद कहा है । बौद्ध रहस्य भावना किंवा रहस्यवाद साधारणतः यह माना जाता है कि रहस्यवाद वहीं हो सकता है जहां ईश्वर की मान्यता है। पर यह मत श्रमण संस्कृति के साथ नहीं बैठ सकता। जैन और बौद्ध धर्म वेद और ईश्वर को नहीं मानते । वैदिक 184
SR No.022771
Book TitleHindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushplata Jain
PublisherSanmati Prachya Shodh Samsthan
Publication Year2008
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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