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________________ हिन्दी जैन साहित्य में रहस्यभावना रहस्य को समझने और अनुभूति में लाने के लिए निम्नलिखित प्रमुख तत्त्वों का आधार लिया जा सकता है - 172 १. जिज्ञासा और औत्सुक्य । २. संसरचक्र में भ्रमण करने वाले आत्मा का स्वरूप। ३. संसार का स्वरूप ४. संसार से मुक्त होने का उपाय ( भेद - विज्ञान) । ५. मुक्त अवस्था की परिकल्पना (निर्वाण ) । इन्हीं तत्त्वों पर प्रस्तुत प्रबन्ध में आगे विचार किया जायेगा । रहस्यभावना का साध्य, साधन और साधक रहस्यभावना का प्रमुख साध्य परमात्मपद की प्राप्ति करना है जिसके मूल साधन हैं - स्वानुभूति और भेदविज्ञान । किसी विषय वस्तु का जब किसी प्रकार से साक्षात्कार हो जाता है तब साधक के अन्तरंग में तद्विषयक विशिष्ट अनुभूति जागरित हो जाती है । साधना की सुप्तावस्था में चराचर जगत साधक को यथावत् दिखाई देता है। उसके प्रति उसके मन में मोह गर्भित आकर्षण भी बना रहता है। पर साधक के मन में जब रहस्य की यह गुत्थि समझ में आ जाती है कि संसार का प्रत्येक पदार्थ अशाश्वत् है, क्षणभंगुर है और यह सत्-चित् रूप आत्मा उस पदार्थ से पृथक् है, ये कभी हमारे नहीं हो सकते और न हम कभी इन पदार्थो के हो सकते हैं। तब उसके मन में एक अपूर्व आनन्दाभूति होती है। इसे हम जैन शास्त्रीय परिभाषा में 'भेदविज्ञान' कह सकते हैं। साधक को भेदविज्ञान की यथार्थ अनुभूति हो जाना ही रहस्यवादी साधना का साध्य कहा जा सकता है । विश्व सत्य का समुचित
SR No.022771
Book TitleHindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushplata Jain
PublisherSanmati Prachya Shodh Samsthan
Publication Year2008
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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