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रहस्य भावना एक विश्लेषण
परमात्मा से मिलने के लिए विरह में तड़पती है, समरस होने का प्रयत्न करती है। समरस हो जाने पर वह उस अनुभूतिगत आनन्द और चिदानन्द चैतन्य रस का पान करती है ।
इस समरसता को प्राप्त करने में संसार से वैराग्य होना नितान्त अपेक्षित है। भ. ज्ञानभूषण प्रथम ने अपने आदीश्वर फागु में (सं. १५५०) आदीश्वर देव की उस मार्मिक घटना का उल्लेख किया है जिसमें नीलांजना नामक नृत्यांगना की मृत्यु हो गई और इस घटना को देखकर आदीश्वर को विरक्ति हो गई। फलतः वे सब कुछ त्यागकर मुक्तिमार्ग पर चल दिये
आहे आयु कमल दल सम चंचल चपल शरीर, यौवन धन इव अथिर करम जिम करतल नीर । आहे भोग वियोग समन्नित रोग तणूं घर अंग, मोहमहा मुनिनिंदित नारीयसंग |
रहस्य भावना किंवा रहस्यवाद के प्रमुख तत्त्व
रहस्यवाद का क्षेत्र असीम है। उस अनन्त शक्ति के स्रोत को खोजना ससीम शक्ति के सामर्थ्य के बाहर है अतः ससीमता से असीमता और परम विशुद्धता तक पहुंच जाना तथा चिदानन्द चैतन्य रस का पान करना साधक का मूल उद्देश्य रहता है । इसलिए रहस्यवाद का प्रस्थान बिन्दु संसार है जहां प्रात्याक्षिक और अप्रात्याक्षिक सुखदुःख का अनुभव होता है और परम विशुद्धावस्था रूप को प्राप्त करता है । वहां पहुंचकर साधक कृतकृत्य हो जाता है। और उसका भवचक्र सदैव के लिए समाप्त हो जाता है। इस अवस्था की प्राप्ति का मार्ग अत्यन्त रहस्य अथवा गुह्य है इसलिए साधक में विषय के प्रति जिज्ञासा और औत्सुक्य जितना अधिक जाग्रत होगा उतना ही उसका साध्य समीप होता चला जायगा ।