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________________ 164 हिन्दी जैन साहित्य में रहस्यभावना हैं। Caird की यह परिभाषा रहस्यवाद और अध्यात्मवाद को एक मानकर चल रही है। William James ने परिभाषा को दिये बिना ही यह कहा है कि उसकी अनुभूति विशुद्धतम और अभूतपूर्व होती है और वह अनुभूति असंप्रेक्ष्य है।* Von Hartman ने रहस्यवाद की व्यापकता और परिभाषा पर विचार करते हुए उसे चेतना का वह तृप्तिमय बांध बतलाया है जिसमें विचार, भाषा और इच्छा का अन्त हो जाता है तथा जहां अचेतनता से ही उसकी चेतनता जाग्रत हो जाती है। प्रायः ये सभी परिभाषायें मनोदशा से विशेष सम्बद्ध हैं। उन्होंने स्वानुभूति को किसी साधना विशेष से नहीं जोडा। ___Ku. Under Hill (कुमारी अण्डरहिल) ने रहस्यवाद की परिभाषा को मनोवैज्ञानिक क्षेत्र के अतिरिक्त दार्शनिक क्षेत्र की ओर लाकर खड़ा किया है और कहा है कि - रहस्यवाद तथ्य की खोज विषयक उस प्रणली का सुनिर्दिष्ट रूप है जो उत्कृष्ट एवं पूर्ण जीवन के लिए काम में लाया जाता है और जिसे हमने अब तक मानवीय चेतना की एक सनातन विशेषता के रूप में पाया है। एक अन्य स्थान पर उन्होंने रहस्यवाद की संक्षिप्त परिभाषा देते हुए उसे भगवत सत्ता के साथ एकता स्थापित करने की कला कहा है, जिसमें किसी सीमा तक इस एकता को प्राप्त कर लिया है अथवा जो उसमें विश्वास रखता है और जिसने इस एकता की सिद्धि को अपना चरम लक्ष्य बना लिया है। यहां व्यक्ति एवं भगवत् सत्ता, दोनों के अस्तित्व को स्वीकार किया गया है तथा दोनों में एकता स्थापन की सम्भावना भी की गई है। अस्तु, अण्डर हिल वेदान्त में विशिष्टाद्वैत की भांति ईश्वर एवं जीव की एकता को स्वीकार करती प्रतीत होती हैं। Frank Jaynor ने उसे और
SR No.022771
Book TitleHindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushplata Jain
PublisherSanmati Prachya Shodh Samsthan
Publication Year2008
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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