________________
165
रहस्य भावना एक विश्लेषण भी स्पष्ट करने का प्रयत्न किया है। उन्होंने कहा है - 'रहस्यवाद दर्शन, सिद्धान्त, ज्ञान या विश्वास है जो भौतिक जगत् की अपेक्षा आत्मा की शक्ति पर अधिक केन्द्रित रहता है, विश्वजनीन आत्मा के साथ आत्मिक संयोग अथवा बौद्धिक एकत्व रहस्यवाद का लक्ष्य है। आत्मिक सत्य का सहज ज्ञान और भावात्मक बुद्धि तथा आत्मिक चिन्तन अनुशासन के विविध रूपों के माध्यम से उपस्थित होता है। रहस्यवाद अपने सरलतम और अत्यन्त वास्तविक अर्थ में एक प्रकार का धर्म है जो कि ईश्वर के साथ सम्बन्ध के सजगबोध (awareness) और ईश्वरीय उपस्थिति की सीधी और घनिष्ठ चेतना पर बल देता है। यह धर्म की अपनी तीव्रतम, गहनतम और सबसे अधिक सजीव अवस्था है। संपूर्ण रहस्यवाद का मौलिक विचार है कि जीवन और जगत् का तत्त्व वह आत्मिक सार है, जिसके अन्तर्गत सब कुछ है और जो प्राणीमात्र के अन्तर में स्थित वह वास्तविक सत्य है जो उसके बाह्य आकार अथवा क्रिया कलापों से सम्बद्ध नहीं है।*W.E. Hocking ने रहस्यवाद की अन्य परिभाषाओं का खण्डन करते हुए उसे धार्मिक अथवा आध्यात्मिक क्षेत्र से सम्बद्ध किया है। उन्होंने कहा है कि रहस्यवाद ईश्वर के साथ व्यवहार करने का एक मार्ग है। इसे हम भावार्थ में एक साधना विशेष कह सकते हैं।
पाश्चात्य विद्वानों द्वारा भी प्रस्तुत की गई रहस्यवाद की ये परिभाषायें कथंचित् ही सही हो सकती हैं। इनमें प्रायः सभी ने ईश्वर के साक्षात्कार को रहस्यवाद का चरम लक्ष्य स्वीकार किया है और उसे मनोदशा से जोड़ रखा है। परन्तु जैन दर्शन इससे पूर्णतः सहमत नहीं हो सकेगा। एक तो जैन दर्शन में ईश्वर के उस स्वरूप को स्वीकार नहीं किया गया जो पाश्चात्य दर्शनों में है और दूसरे रहस्यवादका सम्बन्ध