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हिन्दी जैन साहित्य में रहस्यभावना पांडे), फुटकर शताधिक गीत (समयसुन्दर, सं. १६४१-१७००), पूज्यवाहनगीत (कुशललाभ), गीतसाहित्य (ब्रह्मसागर, सं. १५८०-१६५५), कुमुदचन्द्र का गीतसाहित्य सं. १६४५-१६८७), आराधनागीत वादिचन्द्र (सं. १६५१), जिनराजसूरिगीत (सहजकीर्ति, सं. १६६२), नेमिनाथपद (हेमविजय, सं. १६६६), नेमिनाथराजुल आदि गीत (हर्षकीर्ति, सं. १६८३), मुनि अभयचन्द्र का गीत साहित्य (सं. १६८५-१७२१), ब्रह्मधर्मरुचि का गीत साहित्य (१६वीं), संयम सागर का गीत साहित्य, (सं. १६वीं शती), कनककीर्ति का गीत साहित्य (१६वीं शती), जिनहर्ष का गीत साहित्य (१७वीं शती), लगतराम की जैन पदावली (सं. १७२४), किशनसिंह का गीत साहित्य (सं. १७७१), भूधरदास का पद संग्रह, भवानीदास का गीत साहित्य (सं. १७९१), माणिकचंद का पद साहित्य (सं. १८००), नवलराम का पद साहित्य (सं. १८२५), ऐसे हजारों पद हिन्दी जैन कवियों के यत्र-तत्र बिखरे पड़े हैं जिनमें आध्यात्मिकता और रहस्यवादिता के तत्त्वगुंजित हो रहे हैं। ____ यह काव्य विधा व्यष्टि और समष्टि चेतना का समहित किए हुए है। आध्यात्मिक विश्लेषण को ध्यानात्मकता के साथ जोड़कर कवियों ने सुन्दर और सरस भावबोध की सर्जना प्रस्तुत की है। आत्मा से परमात्मा तक की आयासमयी दीर्घ यात्रा में पूजा, उपासना, उलाहना, दास्यभक्ति, शरणागति, दाम्पत्यभाव, फाग, होली, वात्सल्यभाव, मन की चंचलता, स्नेहादिक विकारभावों की परिणति, सत्संगति, संसार की असारता, आत्मसंबोधन, भेदविज्ञान, आध्यात्मिक विवाह, चित्तशुद्धि आदि विषयों पर हिन्दी जैन कवियों ने जिस मार्मिकता और तलस्पर्शिता के साथ शब्दों में अपने भाव गूंथे हैं वे काव्य की दृष्टि से तो उत्तम हैं ही पर रहस्य साधना के क्षेत्र में भी वे अनुपमता लिये हुए हैं।