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________________ 144 हिन्दी जैन साहित्य में रहस्यभावना उपजी धुनि अजपा की अनहद, जीत नक्षारेवारी। झड़ी सदा आनंदघन बरखत, बन मोर एकनतारी।। १. हिन्दी साहित्य, पृ. १५, इस आधार पर हम कह सकते हैं कि हिन्दी जैन साहित्य में गीतिकाव्य का प्रमुख स्थान रहा है। उसमें वैयक्तिक भावात्मक अनुभूति की गहराई, आत्मनिष्ठता, सरसता और संगीतात्मकता आदि तत्त्वों का सन्निवेश सहज ही देखने को मिल जाता है। लावनी, भजन, गीत, पद आदि प्रकार का साहित्य इसके अन्तर्गत आता है। इसमें आध्यात्म, नीति, उपदेश, दर्शन, वैराग्य, भक्ति आदि का सुन्दर चित्रण मिलता है। कविवर बनारसीदास, बुधजन, द्यानतराय, दौलतराम, भैया भगवतीदास आदि कवियों का गीति साहित्य विशेष उल्लेखनीय है। जैन गीतिकाव्य सूर, तुलसी, मीरा आदि के पद साहित्य से किसी प्रकार कम नहीं। भक्ति सम्बन्धी पदो में सूर, तुलसी के समान दास्य-सख्य भाव, दीनता, पश्चात्ताप आदि भावों का सुन्दर और सरस चित्रण है । जैन कवियों के आराध्य राम के समान शक्ति और सौन्दर्य से समन्वित या कृष्ण के समान शक्ति सौन्दर्य से युक्त नहीं है। वे तो पूर्ण वीतरागी है। अतः भक्त न उनसे कुछ अभीष्ट की कामना कर सकता है और न उसकी आकांक्षापूर्ण ही हो सकती है। इसके लिए तो उसे ही सम्यक्ज्ञान और सम्यक्चारित्र का परिपालन करना होगा। अतः यहां अभिव्यक्त भक्ति निष्काम अहेतुक भक्ति हैं। भावावेश में कुछ कवियों ने अवश्य उनका पतितपावन रूप और उलाहना आदि से सम्बद्ध पद लिखे हैं। ___ हिन्दी जैन कवियों ने गीतिकाव्य को एक नई दिशा दी है। उसे उन्होंने अध्यात्मिक साधना से जोड़ दिया है। इसलिए उसमें सघनता, गंभीरता और सचेतनता अधिक दिखाई देती है। मध्यकालीन हिन्दी
SR No.022771
Book TitleHindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushplata Jain
PublisherSanmati Prachya Shodh Samsthan
Publication Year2008
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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