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________________ 130 हिन्दी जैन साहित्य में रहस्यभावना सीमंधर स्वामी स्तवन, मिथ्या दुक्कण विनती गर्भविचार स्तोत्र, गजानन्द पंचासिका, पंच स्तोत्र,सम्मेदशिखिर स्तवन,जैन चौबीसी, विनती संग्रह, नयनिक्षेप स्तवन आदि शताधिक रचनाएं हैं जो रहस्य भावना की अभिव्यक्ति में अन्यतम साधन कही जा सकती हैं । भक्तिभाव से ओतप्रोत होना इनकी स्वाभाविकता है । उपर्युक्त स्तवन साहित्य में कुछ पदों का रसास्वादन कीजिए। कवि भूदरदास की जिनेन्द्रस्तुति अन्तः करण को गहराई से छूती हुई निकल रही है - अहो जगत गुरु देव सुनिए हमारी । तुम प्रभु दीनदयाल, मैं दुखिया संसारी ।। इस भव वन के मांहि , काल अनादि गमायो । भ्रम्यो चतुर्गति माहिं सुख नहिं दुख बहु पाया ।। कर्म महारिपु जोर एक न काम करै जी । मन माने दुख देहिं काहू सों नाहिं डरै जी ।। इसी प्रकार द्यानतराय का स्वयंभू स्तोत्र भी उल्लेखनीय है जिसमें तीर्थकरों की महिमा का गान है । इसमें पार्श्वनाथ और वर्द्धमान की महिमा के पद्य दृष्टव्य हैं दैत्य कियो उपसर्ग अपार, ध्यान देखि आयो फनिधार । गयो कमठशठमुख कर श्याम ,नमों मेरु सम पारस स्वाम ।। भवसागर तें जीव अपार, धरम पोतमें धरे निहार । डूबत और काढे दया विचार वर्द्धमान बंदों बहु बार ।। पूजा और जयमाला साहित्य में भी कतिपय उदाहरण दृष्टव्य हैं जो रहस्यात्मक तत्त्व की गहनता को समझने में सहायक बनते हैं। अर्जुनदास, अजयराज पाटनी, द्यानतराय, विश्वभूषण,पांडे जिनदास
SR No.022771
Book TitleHindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushplata Jain
PublisherSanmati Prachya Shodh Samsthan
Publication Year2008
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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