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________________ 123 मध्यकालीन हिन्दी जैन काव्य प्रवृत्तियां 123 ७. अध्यात्म और भक्तिमूलक काव्य हिन्दी जैन साहित्य मूलतः अध्यात्म और भक्तिपरक है। उसमें श्रद्धा, ज्ञान और आचार, तीनों का समन्वय है। अर्हन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु इन पंच परमेष्ठियों की भक्ति में साधक कवि सम्यक् साधना पथ पर चलता है और साध्य की प्राप्ति कर लेता है। इस सम्यक् साधन और साध्य की अनुभूति कवियों के निम्नांकित साहित्य में विविध प्रकार से हुई है। १. जैन कवियों ने जैन सिद्धान्तों का विवेचन कहीं-कहीं गद्य में न कर पद्य में किया है। वहाँ प्रायः काव्य गौण हो गया है और तत्त्वविवेचन मुख्य। उदाहरणतः भ.रत्नकीर्ति के शिष्य सकलकीर्ति का आराधना प्रतिबोधसार, यशोधर का तत्त्वसारदूहा, वीरचन्द की संबोधसत्ताणुभावना आदि। इन्हें हम आध्यात्मिक काव्य कह सकते हैं। २. स्तवन जैन कवियों का प्रिय विषय रहा है । भक्ति के क्षेत्र में वे किसी से कम नहीं रहे। इन कवियों और साधकों की आराध्य के प्रति व्यक्त निष्काम भक्ति है। उन्होंने पंचपरमेष्ठियों की भक्ति में स्तोत्र, स्तुति, विनती, धूल आदि अनेक प्रकार की रचनाएँ लिखी हैं। पंचकल्याणक स्तोत्र, पंचसतोत्र आदि रचनाएँ विशेष प्रसिद्ध है। इन रचनाओं में मात्र स्तुति ही नहीं, प्रत्युत वहांजैन सिद्धान्तों का मार्मिक विवेचन भी निबद्ध है। ३. चौपाई, जयमाल, पूजा आदि जैसी रचनाओं में भी भक्ति के तत्त्व निहित हैं। दोहा और चौपाई अपभ्रंश साहित्य की देन है। ज्ञानपंचमी चौपाई, सिद्धान्त चौपाई, ढोला मारु चौपाई, कुमति
SR No.022771
Book TitleHindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushplata Jain
PublisherSanmati Prachya Shodh Samsthan
Publication Year2008
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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