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________________ 120 __ हिन्दी जैन साहित्य में रहस्यभावना इसी प्रकार भक्ति रस से ओतप्रोत सहजकीर्ति के - सुदर्शनश्रेष्ठिरास' की निम्न पंक्तियां दुष्टव्य हैं : केवन कमलाकर सुर, कोमल वचन विलास, कवियण कमल दिवाकर, पणमिय फलविधि पास। सुरनर किनर वर भ्रमर, सुन चरणकंज जास, सरस वचन कर सरसती, नमीयइ सोहाग वास। जासु पसाइय कविलहर, कविजनमई जसवास, हंसगमणि सा भारती, देउ मुझ वचन विलास। इस प्रकार जैन रासा साहित्य एक ओर जहाँ ऐतिहासिक अथवा पौराणिक महापुरुषों के चरित्र का चित्रण करता है वहीं साथ ही आध्यात्मिक अथवा धार्मिक आदर्शों को भी प्रस्तुत करता है। जैनों की धार्मिक रास परम्परा हिन्दी के आदिकाल से ही प्रवाहित होती रही है। मध्ययुगीन रासा साहित्य में आदिकाल रासा साहित्य की अपेक्षा भाव और भाषा का अधिक सौष्ठव दिखाई देता है। आध्यात्मिक रसानुभूति की दृष्टि से यह रासा साहित्य अधिक विवेचनीय है। ६. रूपक काव्य आध्यात्मिक रहस्य को अभिव्यक्त करने का सर्वोत्तम साधन प्रतीक और रूपक होते हैं। जैन कवियों ने सांसारिक चित्रण, आत्मा की शुद्धाशुद्ध अवस्था, सुख दुःख की अवस्थायें, रागात्मक विकार और क्षणभंगुरता के दृश्य जिस सूक्ष्मान्वेक्षण और गहन अनुभूति के साथ प्रस्तुत किये हैं, वह अभिनन्दनीय है। रूपक काव्यों का उद्देश्य वीतरागता की सहज प्रवृत्ति का लोक मांगलिक चित्रण करना रहा है। आत्मा की स्वाभाविक क्षमता मिथ्यात्व आदि के बन्धन से किस प्रकार
SR No.022771
Book TitleHindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushplata Jain
PublisherSanmati Prachya Shodh Samsthan
Publication Year2008
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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