________________
116
हिन्दी जैन साहित्य में रहस्यभावना
४. कथा काव्य
मध्यकालीन हिन्दी जैन कथा काव्य विशेष रूप से व्रत, , भक्ति और स्तवन के महत्त्व की अभिव्यक्ति के रूप में प्रस्तुत किये गये हैं। वहां इन कथाओं के माध्यम से विषय - कषायों की निवृत्ति, भौतिक सुखों की अपेक्षा तथा शाश्वत सुख की प्राप्ति का मार्ग दर्शाया गया है। उनमें चित्रित पात्रों के भाव चरित्र, प्रकृति और वृत्ति को स्पष्ट करने में ये कथा काव्य अधिक सक्षम दिखाई देते हैं। ऐसे ही कथा काव्यों में ब्रह्मजिनदास (वि. सं. १५२०) की रविव्रत कथा, विद्याधर कथा सम्यक्त्व कथा आदि, विनयचन्द्र की निर्जरपंचमी कथा ( सं . १५७६), ठकुरसी की मेघमालाव्रत कथा (सं. १५८०), देवकलश की ऋषिदत्ता (सं. १५६९), रायमल्ल की भविष्यदत्तकथा (सं. १६३३), वादिचन्द्र की अम्बिका कथा (सं. १६५१), छीतर ठोलिया की होलिका कथा (सं. १६६०), ब्रह्मगुलाल की कृपण जगावनद्वार कथा (सं. १६७१), भवगतीदास की सुगंधदसमी कथा, पांडे हेमराज की रोहणी व्रत कथा, महीचन्द की आदित्यव्रत कथा, टीकम की चन्द्रहंस कथा (सं. १७०८), जोधराज गोदीका का कथाकोश (सं. १७२२), विनोदीलाल की भक्तामरस्तोत्र कथा (सं. १७४७), किशनसिंह की रात्रिभोजन कथा (सं. १७७३), टेकचन्द्र का पुण्याश्रवकथाकोश (सं. १८२२), जगतराय की सम्यक्त्व कौमुदी (सं. १७२१), उल्लेखनीय हैं। ये कथा काव्य कवियों की रचना कौशल्य के उदाहरण कहे जा सकते हैं। 'सम्यक्त्व कौमुदी' की कथाओं में निबद्ध काव्य वैशिष्ट्य उल्लेख्य है -