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________________ 110 हिन्दी जैन साहित्य में रहस्यभावना २. पौराणिक काव्य पौराणिक काव्य में महाकाव्य और खण्ड काव्य सम्मिलित होते है। हिन्दी जैन कवियों ने दोनों काव्य विधाओं में तदनुकूल लक्षणों एवं विशेषताओं से समन्वित साहित्य की सर्जना की है। उनके ग्रंथ सर्ग अथवा अधिकारों में विभक्त है। नायक कोई तीर्थंकर, चक्रवर्ती अथवा माहपुरुष है, शांतरस की प्रमुखता है तथा श्रृंगार और वीर रस उसके सहायक बने हैं। कथा वस्तु ऐतिहासिक अथवा पौराणिक है, चतुर्पुरुषार्थो का यथास्थान वर्णन है, सर्गों की संख्या आठ से अधिक है, सर्ग के अंत में छन्द का परिवर्तन तथा यथास्थान प्राकृतिक दृश्यों का संयोजन किया गया है। महाकाव्य के इन लक्षणों के साथ ही खण्ड काव्य के लक्षण भी इस काल के साहित्य में पूरी तरह से मिलते हैं । वहां कवि का लक्ष्य जीवन के किसी एक पहलु को प्रकाशित करना रहा है। घटनाओं, परिस्थितियों तथा दृश्यों का संयोजन अत्यन्त मर्मस्पर्शी हुआ है। ऐसे ही कुछ महाकाव्यों और खण्डकाव्यों का यहां हम उल्लेख कर रहे हैं। उदाहरणार्थ ब्रह्मजिनदास के आदिपुराण और हरिवंशपुराण (वि. सं. १५२०), वादिचन्द्र का पाण्डवपुराण (वि.सं. १६५४), शालिवाहन का हरिवंशपुराण (वि.सं. १६९५) बूलाकीदास का पाण्डवपुराण (वि.सं. १७५४, पद्य ५५००), खुशालचन्द्रकाला के हरिवंशपुराण, उत्तरपुराण और पद्मपुराण (सं. १७८३), भूधरदास का पार्श्वपुराण (सं. १७८९), नवलराम का वर्तमान पुराण (सं. १८२५), धनसागर का पार्श्वनाथपुराण (सं. १६२१), ब्रह्मजित का मुनिसुव्रतनाथ पुराण (सं. १६४५), वैजनाथ माथुर का वर्धमानपुराण (सं. १९००),
SR No.022771
Book TitleHindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushplata Jain
PublisherSanmati Prachya Shodh Samsthan
Publication Year2008
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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