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________________ 109 मध्यकालीन हिन्दी जैन काव्य प्रवृत्तियां पुराण, कथा और चरित काव्य भी प्रबन्ध के अन्तर्गत आते हैं। आचार्यो ने उन्हें भी जैन तत्त्वों को प्रस्तुत करने का माध्यम बनाया है। फिर भी यथावश्यक रसों के संयोजन में कोई व्यवधान नहीं आ पाया। कवियों ने यथासमय श्रृंगार और वीररस का भरपूर वर्णन किया है। पर उसमें भी शान्तरस का भाव सूख नहीं पाया बल्कि कहीं-कहीं तो ऐसा लगता है कि श्रृंगार और वीररस की पृष्ठभूमि में आध्यात्मिक अनुभूति के कारण संसार का चित्रण कहीं अधिक सक्षम रूप से प्रस्तुत हुआ है। इनमें सगुण और निर्गुण दोनों प्रकार की कथाओं और चरित्रों का आलेखन मिलता है। इस आलेखन में कवियों ने लोक तत्त्वों की काव्यात्मक रूढ़ियों का भी भरपूर उपयोग किया है। जहां तक रासों काव्य परम्परा का सम्बन्ध है, उसके मूल प्रवर्तक जैन आचार्य ही रहे हैं। जैन रासो काव्य गीत नृत्य परक अधिक दिखाई देते हैं। इन्हें हम खण्डकाव्य के अनतर्गत ले सकते हैं। कवियों ने इनमें तीर्थंकरों, चक्रवर्तियों और आचार्यो केचरित का संक्षिप्त चित्रण प्रस्तुत किया है। कहीं-कहीं ये रासो उपदेशपरक भी हुये हैं। इनमें साधारणतः पौराणिकता का अंश अधिक है, काव्य का कम । संयोग-वियोग का चित्रण भी किया गया है पर विशेषता यह है कि वह वैराग्यमूलक और शान्तरस से आपूरित है। आध्यात्मिकता की अनुभूति वहां टपकती हुई दिखाई देती है। राजुल और नेमिनाथ का सन्दर्भ जैन कवियों के लिए अधिक अनुकूल सा दिखाई दिया है। इस भूमिका के साथ जैन प्रबन्ध काव्यों को हम समासतः इस प्रकार आलेखित कर सकते हैं - १. पुराण काव्य (महाकाव्य और खण्ड काव्य), २. चरित काव्य, ३. कथा काव्य और ४. रासो काव्य ।
SR No.022771
Book TitleHindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushplata Jain
PublisherSanmati Prachya Shodh Samsthan
Publication Year2008
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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