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हिन्दी जैन साहित्य में रहस्यभावना जिसे जैन मुनि जयवल्लभ ने ७९५ गाथाएं संकलित कर अपने गंभीर अध्यन का परिचय दिया है। वज्जा संस्कृत व्रज्या का प्राकृत रूप है जिसका अर्थ होता है सजातीय विषयों का एकत्र सन्निवेश (कविराज विश्वनाथ)। व्रज धातु का अर्थ गमन भी है। जैन बौद्ध साधु परिभ्रमण करते रहते हैं। मुनि जयवल्लभ को अपने परिव्रजन काल में जो भी मनोरम मुक्तक काव्य मिले उन्हें उन्होंने वज्जालग्गं में संग्रहीत कर दिये। मंगलाचरण में उन्होंने कदाचित् वज्ज पद्धई कहकर यही कहना चाहा हो - तं खलु वजालग्गं वज्जत्ति पद्धई भणिया (गाथा ४)। हिन्दी गीति काव्य
गाथासत्तसई का प्रभाव संस्कृत के आचार्य गोवर्धन और अमरुक पर दिखाई देता है तो हिन्दी के कवि विहारी की विहारी सतसई, दयाराम की दयाराम सतसई जैसे काव्यों में भी उसकी परम्परा समाहित है। इसी तरह वजालग्गं ने भामह, भर्तृहरि, पण्डितराज जगन्नाथ आदि संस्कृत कवियों को और तुलसीदास, रहीम आदि हिन्दी कवियों को प्रभावित किया है। इस काव्य में मुनि जयवल्लभ ने लोकजीवन का बडा मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया है। उदाहरण के रूप में निम्न गाथा देखिए जिसमें लौकी के फूल का कितना सुन्दर चित्रण हुआ है - मा इंदिदिर तुंगसु पंकयदलणिलय मालईविरहे। तुंकिणिकुसुमाइँ न संपडंति दिव्वे पराहुत्ते।। -
भ्रमरवज्जाः गाथा सं. २४५ इसी सन्दर्भ में प्राकृत के उवसग्गहर स्तोत्र, अजियसंतिथ्य