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________________ हिन्दी जैन साहित्य में रहस्यभावना आचार्य हेमचन्द्र के काव्यानुशासन में मुक्तक के सात भेदों का उल्लेख किया गया है - मुक्तक, युग्मक, विशेषक, कलापक, कुल्क, कोष और संघात। कुछ आचार्यो ने प्रच्छदृक और विकीर्णक को मिलाकर यह संख्या ८ कर दी है। वर्तमान में इनमें से केवल मुक्तक ही प्रसिद्ध है जिसे प्रो. शंभुनाथसिंह ने ६ भागों में विभाजित किया है - १. संख्याश्रित, २ . वर्णमालाश्रित, ३. छन्दाश्रित, ४. रागाश्रित, ५. ऋतुआश्रित और ६ पूजाधर्माश्रित। इस विभाजन को परिपूर्ण नहीं कहा जा सकता। पर संक्षेप में हम इसे रसात्मक, धार्मिक, प्रशस्ति और सूक्ति मुक्तक के रूप में विभाजित कर सकते हैं । 96 गीति या मुक्तक काव्य की दृष्टि से ऋग्वेद कदाचित् प्राचीनतम काव्य है, जिसमें “रसो वै स:' भी दृष्टिगत होता है। उषस् सूक्त इसका सर्वोत्तम निदर्शन है। इसी प्रकार अथर्ववेद के युद्ध गीतों में भी गीतितत्त्व सहज ही उपलब्ध है। रामायण और महाभारत तथा कालिदास के साहित्य में भी ये तत्त्व प्रचुर मात्रा में दृष्टव्य है । इसी विधा को हम वाल्मीकि के अन्तर्मानस से उद्भूत उस क्रौंच मिथुन की व्यथा को स्वानुभूति में ला सकते हैं - मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वती समा । यत्क्रौंच मिथुनादेकमवधी काममोहितम् ।। इसमें जो 'तन्त्रीलय समन्वितः' की ध्वनि है वही गीतात्मक काव्य की आत्मा है। रसात्मकता की दृष्टि से यह सुंदर काव्य है । संस्कृत काव्य की उत्तरकालीन परम्परा ऐसी ही काव्य परम्परा पर आधारित रही है। कालिदास, भवभूति जैसे महाकवियों की यही स्वानुभूति उनके काव्यों की आधारशिला रही है। इसे संस्कृत के स्तोत्रकाव्य, नीतिकाव्य, मुक्तक काव्य आदि विधाओं में भी खोजा जा सकता है।
SR No.022771
Book TitleHindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushplata Jain
PublisherSanmati Prachya Shodh Samsthan
Publication Year2008
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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