SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 106
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 90 हिन्दी जैन साहित्य में रहस्यभावना कारण डॉ. भयाणी ने इन्हें संस्कृत का भवभूति कहा है। कवि की विशिष्ट रचनाएं तीन हैं। (१) तिसट्ठि महापुरिस गुणालंकार (महापुराण), (२) णायकुमार चरिउ, और (३) जसहर चरिउ। महापुराण में ६३ शलाका महापुरुषों का चरित्र चित्रण है। स्वयंभू ने विमलसूरि की परम्परा का पोषण किया तो पुष्पदंत ने गुणभद्र के उत्तरपुराण की परम्परा का अनुसरण किया। वर्णन के संदर्भ में उन पर त्रिविक्रम भट्ट का प्रभाव परिलक्षित होता है। णायकुमार चरिउ में श्रुतपंचमी के माहात्म्य को स्पष्ट करते हुये मगध राजकुमार नागकुमार की कथा निबद्ध है। तृतीय ग्रंथ जसहरचरिउ प्रसिद्ध यशोधर कथा का आख्यान करता है। वार्णिक और मात्रिक दोनों तरह के छन्दों का प्रयोग हुआ है। भाषा के विकास की दृष्टि से अधोलिखित कडवक देखिए। जलु गलइ, झल, झलइ । दरि भरइ, सरि सरइ। तडयडइ, तडि पडइ, गिरि फुडइ, सिह णइइ।। मरु चलइ, तरु धुलइ। जलु थलुवि गोउलु वि। गिरुरसिउ, भय तसिउ।थर हरइ, किरभरइ। (महापुराण) इसके बाद मुनि कनकामर (११२२ सं.) का करकंड चरिउ, नयनंदि (सं. ११५०) का सुदंसण चरिउ, धक्कड़वंशीय धनपाल की भविसयत्त कहा, धाहिल का पउमसिरि चरिउ, हरिभद्र सूरि का णेमिणाह चरिउ, यशः कीर्ति का चन्दप्पहचरिउ आदि जैसे कथा और चरित काव्यों में हिन्दी के विकास का इतिहास छिपा हुआ है। इन कथा चरित काव्यों में जैनाचार्यो ने व्यक्ति के सहज विकास की प्रस्तुत किया है और काल्पनिकता से दूर हटकर प्रगतिवादी तथा मानवतावादी दृष्टिकोण अपनाया है।
SR No.022771
Book TitleHindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushplata Jain
PublisherSanmati Prachya Shodh Samsthan
Publication Year2008
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy