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________________ The Sadayavatsa-kathā 251 इकि छांणिइ, इकि छांटइ छारि, इकि खीजवइ अनेरइ खारि । एकदति तव 1ओपी इसी, राय राजा छवि राणी जिसी ॥ ४५५ तेह-तणइ छोकरि नहीं छेह, डोकरी देखी हरखी तेह । वादिइ विवहारीई हरावी, टका ठीक रोक लेइ धरि आवी ४५६ ॥ [गणिकाप्रति कुलस्त्रीजन-धृणा ] आपापणा धवलहर धसी, अबला सवे आवी उद्धसी । 'कहउ, किसी-परि जीतउ वाद ?,' बोली न सकइ बईठउ साद ॥ ४५७ जीणइ घणा घासव्या ति घाठी, कला बहुत्तरि-सि बुद्धि नाठी । त्रिणि दिवस जि लांघणइ लांघी, घणे घावू ए कीधी घांधी ॥ ४५८ परख्या पाखइ पुरुष वीससी, नयर-मांहि नर सघलइ हसी । 'काई रे छोडी ! पूछइ काज, हारिउ वाद विगूती आज' ॥ ४५९ [ सदयवत्स प्रति कामसेना-आकर्षण ] कामसेनि सभलिउ स्वरूप, ते राउत-नू जोईइ रूप । तेडिउ सघलउ सपरदाउ, चातुरि चतुर जोएवा जोउ ॥ ४६० पुहती मडपि मधि-आदित, वाजिउ 5गजर सधुडिउ गीत । वंशकारि सातइ सुर सारि, आलति कीधी आलतिकारि ॥ ४६१ उडीमान उडवीउ ताल, झणझुण करइ मृदंग रसाल । धुरी धूआनी धूरली आदि, रही रेख रविन : प्रासादि ॥ ४६२ नयण वयण मन मस्तक नास, हावभाव कटि-तणा कलास । उर कर चरण लगइ चालवइ, इम जूजूआ अंग जालवइ ।। ४६३ १. 'देखो' आ. २. 'विगोई' आ. ३. 'जोय' आ. ३. 'जोवा नइ तिहां' आ. ४. 'मूधा दीती' अ. ५. 'गुहर सुद्ध सगीत' आ. ६. 'रणझिण' आ. ७. 'देवनई' आ. ८. 'मयण' आ. ९. 'करई' आ.
SR No.022756
Book TitleIndological Studies
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH C Bhayani
PublisherParshva Prakashan
Publication Year1993
Total Pages376
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size25 MB
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