SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 260
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 250 Prakrit and Apabhramsa Studies गणिकानी मा अतिहि रढील, विवहारीउ मनाविउ मिल । डोकरी म डिउ गाढउ डोह, अर्ध आपतइ न छूटइ छोह" ॥ ४४६ [सदयवत्स-वचन] सदयवच्छ बोला : 'सुणि मित्र ', ए खाटू अति करइ अखत्र ।' [ठूठा-वचन ] 'देव : अनेरउ नथी अन्याउ, माती रांडइ वी टिउ वाउ ॥ ४४७ एक भांडणिया ऊठी भाड, बीजउ महिं मूकिउ साडी । त्रीजी राउल-वाई रांड, इणि कारण टलीइ मांड' ॥ ४४८ ते जोवा पुहुतु प्रासादि, डोकरि दीठी वढती वादि । 'नर नवयौवन छेइ नवर गि, ए बोलिस्यड अम्हारइ 4अंगि' ॥ ४४९ एकदति बोलह : 'मुणि साह !, अम्हि परठ्या छइ राउत आह ।' सेठि-कुमर ऊचरइ सुजाण, 'आपण विहु जण एह प्रमाण' ॥ ४५० तव तीणइ बिहु कारण कही, राउति वात विमासी सही । सदयवच्छि विचि लीधा साद, तेह-नः निरवाल्यु वाद ॥ ४५१ [ सदयवत्स-कृत चतुर न्याय ] एक सेठि हकारिउ ताम, ‘आणि विच्छेदिइ दर्पण द्राम' । सेठिइ जे जण बोलाविउ, अरथ आरीसउ लेई आवीउ ॥ ४५२ धन रेडी ओडिउ आरीस. एकदति तव दिइ आसीस । आघी थई लेवानइ अर्थ, 'दरपण-मांहि गिणी लिउ गर्थ' ॥ ४५३ [गणिका-कपट-उपहास] हाथि ताली देई हसिउ लोक : 'रांडइ लीघा टका रोक' । अंतरि तेडावी डोकरी, काढी बाहरि बांहि धरी ॥ ४५४ १. 'इतनी अति आडली रढील' आ. २. 'सुदय भणइ सुणि ठूठा मित्र' आ. ३. 'ए मुह' अ. ४. 'भगि' आ.
SR No.022756
Book TitleIndological Studies
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH C Bhayani
PublisherParshva Prakashan
Publication Year1993
Total Pages376
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy