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Prakrit and Apabhramsa Studies
[ कामसेना-विह्वलता] उत्तर ऊजेणी-पति दिट्ट, बईठउ मत्तवारणइ बलिट्ठ । कामसेनि थिई काम-विकाम, माणस काइ न जाणइ माम ॥ ४६४
तेउ चलावी भणी अवास, त्रुटी नाडि, न सलकइ सास । नयर. नरेसर वाहर करई, इसि पात्र अण-खूटइ मरई ॥ ४६५
[ उपचार! राजबंद जई जोई नाडि, एउ विकार नहीं अम्ह पाडि । देस-विदेसी बीज। बहू, राजा-5आयसि आवि सह ॥ ४६६
एकि भणईः 'ऊतारउ आंच,' एकि सेक दिवरावई पांच । एकि भणइ : 'आलस छांडीइ,' एकि भणइः ‘मडल मांडीई' ॥ ४६७
एकि भणइ : 'अम्ह हलूउ हाथ,' 8एकि भगइः 'दिई कडूउ क्वाथ' । आपापणी कला सवि कहई, गुणीया नई वईद गहगहई ॥ ४६८
[ गूर्जर वैद्य-निदान । अनग-रोग] गूर्जर वैद्य तिहारइ हसिउ, जाणे धरणि-धन तरि जिसिउ । दीठई रूपि सरूप ओलखई, वेद अनेरू रा आगलि झखइ : ॥ ४६९
'एहनई अंगि अग्गलउ अनग, नरवर ! को दीठउ नवरंग । महरति एकि मूर्छा भाजसिइ, मिलिउ लोक देखी लाजसिइ' ॥ ४७०
तास वचनि कालमुहा थाई, वलिउ चेत. 10वैद ऊठ्या जाइ ! । बाहरि वरतई भीडाभीड, प्रमदा पंचवाणनी पीड ॥ ४७१
१. 'हूइ कामिनी काम' आ. २. 'लेई' आ. ३. 'लाभई' आ. ४. 'नरेश न' आ. ५. 'इसि ते' अ. ६. 'लांच' अ. ७. 'कहई' आ. ८. 'एक वाइ छत्रीमु काथ' आ. ९. 'गुणीआ नीकारकि' आ. १०. 'वेगि ऊठी' आ.