________________ -.- ~ ~ / सुदर्शन-चरित / चारों और नजर दौड़ाई / उसे नीचेकी ओर दिखाई दिया कि सब परिग्रह रहित, परम गुणवान् और अपने शरीरतकसे मोह छोड़े हुए एक दिगम्बर महात्मा ध्यान कर रहे हैं। उन्हें देखते ही व्यन्तरीके क्रोधका कुछ ठिकाना न रहा / उसने कु-अवधिज्ञानसे मुनिके साथ जिस कारण उसकी शत्रुता हुई थी उसे जान लिया / उसे यह भी ज्ञान होगया कि इन मुनिने मेरी रति-कामनाको भी पूरा नहीं किया था, और इसी कारण मुझे मरना पड़ा था। तब उस बैरका बदला चुकानेके लिए उसने मुनिपर उपसर्ग करना विचारा / वह आकाशसे नीचे उतरकर सुदर्शनके पास आई और अपनी बड़ी डरावनी क्रूर सूरत बना मुनिसे बोली-सुदर्शन, मुझे खूब याद है कि मैं पूर्व जन्ममें एक राजरानी थी। मैंने तब बड़ी आशासे तेरे साथ संभोग-सुखकी इच्छा की थी; पर तूने अपने इस धीरताके अभिमानमें आकर मेरी उस इच्छाका तिरस्कार किया था। उसी दुःखके मारे मरकर मैं इस जन्ममें व्यन्तरी हुई। मैंने पहले भी तुझपर उपसर्ग किया था, पर उस समय किसी देवने तुझे मौतके मुखसे बचा लिया था। अस्तु, अब बतला कि इस समय मैं जो तुझे कष्ट दूंगी, उनसे तेरी कौन रक्षा करेगा ? . इस प्रकार कड़े वचनोंके साथ उस पापिनीने मुनिपर उपसर्ग करना शुरू किया। उसे विक्रियाऋद्धि तो प्राप्त थी ही, सो उसने नाना भाँतिकी भयावनी और कर सूरतें बनाकर मुनिको डराया, अनेक दुर्वचन कहे, बाँधा, मारा-पीटा / उन्हें कष्ट देनेमें उसने कोई कमी न रक्खी / उस समय मुनिके योगबलसे देवोंके आसन कम्पित हुए। जिस देवने सुदर्शनका उपसर्ग पहले भी दूर