________________ सुदर्शनका निर्वाण-गमन। [93 हित करनेवाले, सब दोषोंसे रहित और सर्वोत्कृष्ट हैं; वे सिद्ध भगवान् , जो उत्कृष्ट गुणोंके धारक और अन्त रहित हैं-जिनका कभी नाश न होगा; वे आचार्य, जो सदा धर्म-साधनमें तत्पर और पंचाचारके पालनेवाले हैं तथा बुद्धिमान् लोग जिन्हें नमस्कार करते हैं; और वे विद्वान् उपाध्याय तथा साधु-ये पाँचों परमेष्ठी मुझे अपने अपने गुण प्रदान करें-मुझे अपना सरीखा महान् योगी बनावें / आठवाँ परिच्छेद। सुदर्शनका निर्वाण-गमन / जिन्होंने सब कमाको जीत लिया, उन परम धीर और गुणोंके __समुद्र सुदर्शन मुनिको मैं नमस्कार करता हूँ। वे मुझे अपनी शक्ति प्रदान करें। देवदत्ता उन्हें मसानमें खड़ा कर चली गई। वे उसी तरह स्थिर-मन, जितेन्द्री और निर्विकार हो ध्यान करते रहे / इसी समय वह जो पूर्व जन्ममें अभयमती रानी थी और जिसने पहले भी सुदर्शन मुनिपर उपसर्ग किया था, विमानमें बैठी हुई आकाश मार्गसे जा रही थी। मुनिके ऊपर ज्यों ही उसका विमान आया कि वह मुनिके योग-प्रभावसे आगे न बढ़ पाया-वहीं कीलित हो गया / विमानको ठहरा देख व्यन्तरीको बड़ा आश्चर्य हुआ। उसने तब विमानके ठहर जानेका कारण जाननेके लिए