________________ .90 ] सुदर्शन-चरित / रक्खी-मुनिपर घोरतर उपद्रव किया। जिसे देख कामी लोग अपनी कभी रक्षा नहीं कर सकते। इस महान् दुःसह उपसर्गमें भी सुदर्शन मेरुसा अचल बना रहा। उसने अपनी वैराग्य भावनाको बढ़ानेके लिए तब अपने पवित्र हृदयमें इस प्रकार विचार करना शुरू किया / वे निर्मल विचार उसकी मन-वचन-कायकी क्रियाओंको रोकनेमें बड़े सहायक हुए। उसने विचारा-ये वेश्यायें पापकी खान हैं। इन्हें नीच ऊँचके साथ विषय-सेवनका विचार नहीं। शहरकी गटरमें जैसे मल-मूत्र बहता है उसी तरह इनके यहाँ नीचसे नीच पुरुष आते रहते हैं / तब भला, ऐसी नीच इन वेश्याओंको कौन बुद्धिमान् सेवेगा। जो नीच इन मद्य-मांस खानेवाली वेश्याओंके साथ विषय-सेवन करते हैं उनके शरीरसे अपने शरीरका सम्बन्ध कराते हैं, उस समय जो परस्परमें श्वासोश्वासका संमिश्रण होता है, उससे उन लोगोंके खाने-पीने आदिका कोई व्रत-नियम नहीं बन सकता। इनके साथ सम्बन्ध करनेसे जो गर्भ रहता है उससे उन व्यभिचारी लोगोंके कुलका नाश होता है, कलंक लगता है और सातों व्यसनोंका वे फिर सेवन करने लगते हैं / इस वेश्या-सेवनके पापसे यह तो हुई इस लोकमें हानि और परलोकमें वे विषय-लम्पटी घोर दुःखोंके देनेवाले नरकोंमें जाते हैं। इस प्रकार वेश्याओंके दोषोंपर विचार कर सुदर्शन मुनिने अपने मनको वैराग्यरूपी दृढ़ कवचसे ढक लिया और संकल्प रहित उत्कृष्ट आत्मध्यानमें उसे लगाकर आप मेरुसा स्थिर