________________ संकटपर विजय / [ 9 लिए अभीसे जीवन पर्यन्त अनशन-प्रत धारण करता हूँ और कहाचित् दैवयोगसे प्राण बच जायँ तो मैं पारणा करूँगा। यह प्रतिज्ञा कर सुदर्शन मुनिने शरीरसे मोह छोड़ दिया और काठकी तरह निश्चल होकर अपनेको भगवान्के ध्यानमें लगाया। यह देखकर दुष्टिनी देवदत्ताने मुनिके स्थिर मनको विचलित करने, उनके ब्रह्मचर्यको नष्ट करने और अपने काम-सुखकी सिद्धिके लिए उनपर उपद्रव करना शुरू किया / काम-वासनासे अत्यन्त पीड़ित होकर उसने अपने शरीर परके सब वस्त्रोंको उतार दिया और नंगी होकर वह मुनिके गलेसे लिपट गई। उनके शरीरको अपने हाथोंके बीचमें लेकर उनसे लिपट कर वह सेनपर सो रही / इतने पर भी जब मुनिको वह विचलित न कर सकी तब उसने और भी भयंकर विकार चेष्टायें करना आरंभ की। वह कभी मुनिकी उपस्थ इन्द्रीको अपने हाथोंसे अपने गुह्य अंगमें रखती, कभी उनके हाथोंको अपने स्तनोंपर रखती, कभी उनके मुँहमें अपना अपवित्र मुँह देती, कभी विकारोंकी गुलाम बनकर नंगी ही उनके सुन्दर शरीरपर जा पड़ती और काम-वासनासे अनेक विकार चेष्टाये करती और कभी उनके नंगे शरीरको अपने शरीरपर लिटा लेती / इत्यादि कामरूपी अग्निको बढ़ानेवाली नाना दुश्चेष्टाओंको उसने अपने मुँह, स्तन, हाथ, योनि आदि द्वारा किया, कटाक्ष किया, हाव-भाव-विलास किया, खूब मनोहर आवाजसे गाया, नाचा, सिंगार किया। मतलब यह कि उनके ब्रह्मचर्य-व्रतको नष्ट करनेके लिए उसमें जितनी शक्ति थी, उसने वेश्या-योग्य विकारोंके करनेमें कोई बात उठा न