________________ सुदर्शन-चरित। द्वारा सब इन्द्रियाँ परितृप्त होती हैं। चतुर पुरुषोंको इसके साथ सुखोपभोग करनाही चाहिए। ब्रह्माजीने संसारमें जितनी भोगोपभोगकी वस्तुयें निर्माण की हैं वे सबस्त्री और पुरुषोंके आनन्दउपभोगके लिए हैं। इसलिए इन्द्रियोंकी तृप्तिके लिए इन भोगोपभोगोंको, जो जीवनको सफल करनेवाले हैं, भोगने ही चाहिए। और जो स्वर्ग-सुखका कारण यह तप है वह तो बुढ़ापेमें वानप्रस्थाश्रममें घर-बार छोड़कर धारण किया जाता है। जो समझदार लोग हैं वे तो इसी प्रकार जैसी जैसी उनकी अवस्था होती है उसी प्रकार धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चार पुरुषार्थोंका सेवन करते हैं। आपको भी वैसा ही करना चाहिए / देवदत्ताकी ये सब बातें सुन-सुनाकर सुदर्शन मुनिने उससे कहा-ओ बे-समझ . मूर्षिणी, तूने यह जो कुछ कहा वह निंद्य है-बुरा है। तू स्त्रीको रत्न कहकर यह बतलाना चाहती है कि संसारकी सब वस्तुओंमें स्त्री श्रेष्ठ है, पर तेरा यह कहना सत्य नहीं-झूठा है। क्योंकि स्त्री कैसी ही सुन्दर क्यों न हो, पर जब उसके सम्बन्धमें विचार करते हैं तब यह स्पष्ट जान पड़ता है कि उसके मुखमें श्लेष्म-कफ, चर्म, हड्डी आदिको छोड़कर ऐसी कोई सुन्दर वस्तु नहीं जिसे अच्छे लोग प्यार कर सकें। स्त्रियोंका उदर, जिसे बड़ी बड़ी उपमायें दी जाती हैं, मल, मूत्र, मांस, लोहू, मज्जा; हड्डी आदि दुर्गन्धित और निंद्य वस्तुओंसे भरा हुआ है-उसमें ऐसी कोई मनको हरनेवाली चीन नहीं दिखाई पड़ती / स्त्रियोंके स्तनों में मांस और खूनके सिवा कोई पवित्र वस्तु नहीं। उनका योनिस्थान,