________________ संकटपर विजय / [83 तुम बड़े ही सुन्दर हो, तुम्हारी इस दिव्य सुन्दरताको देखकर बेचारा कामदेव भी शर्मिन्दा होता है / तुम्हारे सौभाग्य, तेजस्विता आदिको देखकर मनमें एक अपूर्व आनन्दका सोता बहने लगता है। तुम गुणोंके समुद्र हो। प्यारे, भाग्यने तुम्हें सब कुछ दिया है। तुम्हारी भर जवानीकी छटायें छूटकर जिधर उड़ती हैं उधर ही वह सबको अपनी ओर खींचने लगती हैं। तब मैं जो तुम्हें इतना प्यार करती हूँ, इसपर तुमको आश्चर्य न करना चाहिए। तुम इतने बुद्धिमान् होकर भी न जाने क्यों ऐसी झंझटमें पड़े हो और इतना कष्ट सह रहे हो। बतलाइए तो इस दुर्धर तपको करके और ऐसा शारीरिक कष्ट उठाकर तुम क्या लाभ उठाओगे ? और फिर तुमको करना ही क्या है, जिसके लिए ऐसा कष्ट उठाया जाय / तुम तो इन सब कष्टोंको छोड़कर आनन्दसे यहीं रहो। मैंने तुम्हारी कृपासे बहुत धन कमाया है। मेरे पास सोने-जवाहरातके बने अच्छे अच्छे गहने-दागीने हैं। भोगोपभोगकी एकसे एक बढ़िया चीज़ है / अच्छे कीमती और सुन्दर रेशमी वस्त्र हैं। मैं अधिक तुमसे क्या कहूँ, मेरे यहाँ जिन वस्तुओंका संग्रह है वह संग्रह 'एक राजाके महलमें भी न होगा। इसके सिवा सर्वोपरि जैसे तुम सुन्दर वैसी ही मैं सुन्दरी। भगवान्ने–विधिने आपकी मेरी बड़ी अलबेली जोड़ी मिलाई है / यही देखकर मेरा मन तुमपर अनुरक्त हुआ है। तब प्यारे, प्रार्थनाको मान देकर तुम यहीं रहना कुबूल करो। तुम हम खूब आनन्द-भोग करेंगे और इस जिन्दगीका मजा लूटेंगे। क्योंकि इस असार संसारमें एक स्त्री-रत्न ही सार है। इसके