________________ 89. ] सुदर्शन-चरित / रास्तेमें जाता हुआ वह इस बातका विचार करता जाता था कि कौन घर उत्तम लोगोंका है और कौन नीच लोगोंका / कारण साधु लोग उत्तम पुरुषोंके यहीं आहार लेते हैं। सुदर्शन जो आहार करता वह इसलिए नहीं कि उसका शरीर पुष्ट हो, किन्तु इसलिए कि धर्म-साधनाके लिए शरीरका टिका रखना वह आवश्यक ज्ञान करता था / __अपनी दिव्य सुन्दरतासे कामदेवको लजानेवाले उस महान् धीर युवा महात्मा सुदर्शनको जाते हुए उस अभयमती रानीकी दासीने, जिसका कि ऊपर जिकर आ चुका है, देखा। उसने तब अपनी मालकिन देवदत्ता वेश्यासे कहा-देखो, जिस सुदर्शन मुनिकी बाबत मैंने तुमसे जिकर किया था, वह यह जा रहा है / अब यदि तुम कुछ कर सकती हो, तो करो / इतनी याद दिलाते ही देवदत्ताको अपनी प्रतिज्ञाकी भी याद हो उठी। उसने तब अपनी एक दासीको बुलाया और उसे नकली श्राविका बनाकर सुदर्शन मुनिको लिवा लेआनेको भेना / उस दुष्टिनीने जाकर उसको नमस्कार किया और आहारके लिए प्रार्थना की। सुदर्शन खड़ा होगया। वह सीधासादा और शुद्ध-हृदयी था; सो उसने उस दुष्टिनीकी ठग-विद्याको न जान पाया / दासी मुनिको देवदत्ताके घरमें ले आई। यहाँसे वह सुदर्शनको एक दूसरे कमरेमें लिवा लेगई और नमस्कार कर उस दुराचारिणीने मुनिको एक पट्टेपर बैठा दिया / ___ इतनेमें देवदत्ता भी वहाँ आकर पास ही रक्खे हुए पट्टेपर बैठ गई। मुनिके साथ नाना भाँति कुचेष्टा कर वह बोली-प्यारे,