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________________ 80 ] सुदर्शन-चरित / पवित्र ध्यान-ज्योति, जो मोक्ष-मार्गमें पहुँचानेवाली है, सदा जला करती थी। ____ इस प्रकार चारित्र और व्रतोंका जिसने धारण किया, धर्म और शुक्लध्यानमें अपने आत्माका स्थिरतासे लगाया, इन्द्रियों और कामदेवको पराजित किया, सब दोषांको नष्ट किया, संसारकी चरम सीमा प्राप्त की और जो गुणोंका समुद्र कहलाया वह सुदर्शन मोक्षमार्गमें जय लाभ करे / उसे मैं नमस्कार करता हूँ, वह मेरी आत्मशक्तियोंको बढ़ावे / व्रतोंके धारण करनेसे सब गुण प्राप्त होते हैं और आत्महित होता है। बुद्धिमान् लोग व्रतोंका आश्रय इसीलिए प्राप्त करते हैं कि इनसे शिव-वधूका सुख प्राप्त होता है। ऐसे व्रतोंके लिए मैं भक्तिसे नमस्कार कस्ता हूँ। मेरी यह श्रद्धा है कि व्रतोंको छोड़कर सुखसम्पत्तिका देनेवाला और कोई नहीं है। इन व्रतोंका मूल है क्रिया-चारित्र / ऐसे व्रतोंमें मैं अपने चित्तको लगाता हूँ और व्रतोंसे प्रार्थना करता हूँ कि वे मेरी सदा रक्षा करें। - सुदर्शन और विमलवाहन मुनिराज मुझे अपने अपने गुण प्रदान करें, मोक्ष-लक्ष्मीको प्राप्त करनेका प्रयत्न करते हैं, जो ध्यानके द्वारा सब पापरूपी विषको नष्ट कर ज्ञानरूपी समुद्रके पार पहुँच चुके हैं, जो शीलवत आदि उत्तम उत्तम गुणोंसे युक्त हैं और धर्मात्मा जन जिनकी सदा पूजा-प्रशंसा करते हैं। उन परम वीतरागी मुनिराजोंको मेरा नमस्कार है।
SR No.022755
Book TitleSudarshan Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kashliwal
PublisherHindi Jain Sahitya Prasarak Karyalay
Publication Year
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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