________________ 78 ] सुदर्शन-चरित। wwwwwww यह बड़ा बुरा ध्यान है / पर सुदर्शनने अपने निर्मल आत्मापर इसका तनिक भी असर न होने दिया / सो ठीक ही हैसामान्य योगियोंके महानतमें भी जब यह कुछ हानि नहीं कर सकता तब सुदर्शनसे महायोगीके अत्यन्त शुद्ध आत्मापर यह कैसे अपना प्रभाव डाल सकता है ! ये आर्तध्यान और रौद्र ध्यान बुरे हैं, इसलिए छोड़ने योग्य हैं। और धर्मध्यान तथा शुक्लध्यान आत्म-कल्याणके परम साधन हैं, इसलिए ग्रहण करने योग्य हैं / उक्त दोनों ध्यानोंकी भाँति इनके भी चार चार भेद हैं। धर्मध्यानके चार भेदोंमें पहला आज्ञाविचय-धर्मध्यान, अर्थात् सर्वज्ञ भगवान्ने जो सत्यार्थ प्रतिपादन किया और कम बुद्धि होनेके कारण यदि वह समझमें न आवे तो उसपर वैसा ही विश्वास कर वार वार विचार करना। दूसरा अपाय विचय-धर्मध्यान, अर्थात् करुणाई अन्तःकरणसे, हा ! मिथ्यामार्गपर चलते हुए ये संसारी जीव कव सुमार्गपर चलने लगेगें, इस प्रकार मिथ्यामार्गके अपायनाशका बार वार चिंतन करना / तीसरा विपाकविचय-धर्मध्यान, अर्थात् ज्ञानावरणादि कर्मोंके फलपर वार वार विचार करना / चौथा संस्थानविचय-धर्मध्यान, अर्थात् लोकके संस्थानका-आकार-प्रकारका चिंतन करना / यह धर्मध्यान उत्कृष्ट ध्यान है, सुखका देनेवाला है, धर्मका समुद्र है और सर्वार्थसिद्धि पर्यन्त ले जानेवाला है। महायोगी सुदर्शन अपने योगोंको रोक कर इस ध्यानको करता था। ___ इसके बाद उसने अपने मनको निर्विकल्प और परम वैरागी बनाकर अप्रमत्तगुणस्थानमें शुक्लध्यानके पहले पाये पृथक्त्ववितर्क