________________ सुदर्शनकी तपस्या / [ 73 __सुदर्शनने तपस्या द्वारा अपनी आत्मशक्तिको खूब बढ़ा लिया। वह बड़ा ही धीर और तेजस्वी होगया / दुःसह परिषहोंको सहने लगा। नाना देशों और नाना गाँवोंमें घूमने-फिरनेसे अनेक भाषायें उसे आगई। ऐसा कोई गुण न बचा जो उसमें न हो। वह वज्रवृषभनाराचसंहननका धारक था / उसे इस प्रकार सहनशील और तेजस्वी देखकर उसके गुरुने अकेले रहनेकी आज्ञा दे दी। गुरु महाराजकी आज्ञा पाकर वह अपने मूल और उत्तर गुणोंका मन-वचन-कायकी शुद्धिपूर्वक पालन करता हुआ अकेला ही नाना देशोंमें पर्यटन करने लगा। उसने अब कर्मोंके नाश करनेकी खूब तैयारी की। अपनी शक्तिको प्रगट कर वह बारह प्रकार तप करने लगा। १-अनशन-तपके लिए वह पन्द्रह-पन्द्रह दिन, एक-एक, दो-दो तथा चार-चार, छह-छह महीनाके उपवास करता था। इसलिए कि उनसे उत्पन्न हुई तपरूपी अग्नि कर्मरूपी वनको भस्मकर मोक्षका सुख दे। २-अवमौदर्य-तपके लिए वह पारणाके दिन भी थोड़ासा खाकर रह जाता और फिर दिनों दिन आधा आधा आहार घटाता जाता था। जिससे कि प्रमाद-आलस न बढ़ पाये। ___३-वृत्तपरिसंख्यान-तपके लिए वह बड़ी बड़ी कड़ी प्रतिज्ञायें करता। कभी वह प्रतिज्ञा करता कि आज मुझे चोराहेपर आहार मिलेगा तो करूँगा, अथवा एक ही घरतक आहारके लिए जाऊँगा / कभी इससे और कोई विलक्षण ही प्रतिज्ञा करता। उसी दशामें यदि आहार मिल गया तो कर लेता, नहीं तो वापिस तपोवनमें लौट आता।