________________ 72 ] सुदर्शन-चरित / जीवोंपर मेरा समान भाव है, और अटाईस मूलगुणोंकी, जो केवलज्ञान आदि गुणोंके प्राप्त करानेवाले हैं, भावना भाते हुए उस धर्मात्माने मन-वचन-कायकी शुद्धिपूर्वक सब सुखों और मुक्तिकी माता दिव्य जिन-दीक्षा ग्रहण कर ली। ___सुदर्शनका यह साहस देखकर राजाको बड़ा वैराग्य हुआ / वह भी तब संसार-शरीर-भोगोंसे विरक्त होगया। उसने अपने पुत्रको राज्यका सब भार सौंपकर और सुदर्शनके पुत्र सुकान्तको राजसेठ बनाकर बाह्याभ्यन्तर परिग्रहको छोड़कर सुदर्शनके साथ ही विमलवाहन मुनिराजसे जिन-दीक्षा लेली, जो संसारका भ्रमण मिटाकर कर्मोका नाश करती है-मोक्षका सुख देती है। अपने स्वामीको योगी होते देख सब राज-रानियाँ भी एक साड़ीके सिवा सब परिग्रहको छोड़कर दीक्षा ले आर्यिका होगई। अब वे जप-तप, ध्यानाध्ययन करती हुई आर्यिकाओंके साथ रहने लगीं / अपने स्वीकार किये संयमको पालती हुई और धर्म साधन करती हुई उन्होंने वहीं पारणा किया। यहाँसे वे सब मुनि विहार कर अनेक देशों और शहरोंमें धर्मोपदेशार्थ घूमे-फिरे / अपने व्रतोंको उन्होंने प्रमाद रहित होकर पालन किया। सुदर्शन बड़ा बुद्धिमान् और जितेन्द्री था, सो उसने अभ्यासरूपी खेवटिये द्वारा खेये गये और अप्रमादरूप वायु वेगसे बहनेवाले श्रीगुरुके मुखरूपी जहाजपर चढ़कर थोड़े ही दिनोंमें द्वादशांगरूपी महान् समुद्रको, जो कि अनमोल रत्नोंसे भरा हुआ है, पार कर लिया /