________________ सुदर्शनकी तपस्या / इसमें भूख-प्यासरूपी आग जल रही है / काम, क्रोध, लोभ, मान, मायारूपी भयंकर सोने अपने रहनेका इसे बिल बना लिया है और एक ओर धर्म-रत्नके चुरानेवाले पंचेन्द्रियरूपी चोरोंने इसमें अपना डेरा डाल रक्खा है / तब ऐसी जगह कौन बुद्धिमान् एक क्षणभरके लिए भी रहना पसन्द करेगा ! इस शरीरका पाना तो उन्हीं लोगोंका स्मफल है जिन्होंने स्वर्ग, मोक्ष और धर्मकी प्राप्तिके लिए कठिनसे कठिन तप कर शरीरको कष्ट दिया, औरोंका नहीं। यह जानकर इस असार शरीर द्वारा स्वर्ग, मोक्ष और आत्म-कल्याणका परम कारण निर्दोष तप करना चाहिए। सबमें मन बड़ा ही चंचल है। शरीर और इन्द्रियरूपी नौकरोंका राजा है। इसीकी प्रेरणासे इन्द्रियाँ विषयोंकी ओर जाती हैं / इसलिए सबसे पहले इस दुर्जय मनको वैराग्यरूपी खड्गसे मार डालना चाहिए। क्योंकि जिस बुद्धिमान्ने अपने मनको रोक लिया, उसकी इन्द्रियाँ फिर कुछ कुकर्म नहीं कर पातीं और उनके लिए कोई आश्रय न रहनेसे वे स्वयं नष्ट हो जाती हैं। इसके अतिरिक्त धर्मात्मा पुरुषोंको मोक्ष प्राप्तिके लिए व्रत, समिति आदि ग्रहण कर बड़ी सावधानीके साथ छह कायके जीवोंकी रक्षा करनी चाहिए। ये सब यत्न कर्मोके नाश करनेके लिए बतलाये गये हैं। जिनभगवान्ने जिस महान् धर्मका उपदेश किया है, उसका मूल है-' अहिंसा ' / यह धर्म संसारका भ्रमण मिटाकर जीवको मोक्षका सुख प्राप्त कराता है। इस धर्ममें संयम ग्रहण द्वारा बारह अव्रतका त्याग करना कहा गया है। क्योंकि ये अव्रत पाप बंधके कारण हैं।