________________ सुदर्शनकी तपस्या / इसमें भ्रमण करानेवाले पाप-कर्म जीवों के लिए बड़े ही अनर्थके करनेवाले हैं। इन संतति-क्रमसे चले आये कर्मोका कारण मिथ्यात्व है। वह मोक्ष-मार्गका नष्ट करनेवाला और महान् दुःखोंका देनेवाला है। उसे सहसा छोड़ देना बड़ा ही कठिन है। उसके पाँच भेद हैं / एकान्त, विनय, विपरीत, सांशयिक और अज्ञान / ये पांचों ही मिथ्यात्व महानिंद्य हैं, हलाहल विष हैं। इनके सम्बन्धसे संसार बढ़ता है, पाप बढ़ता है और अनन्त दुःख उठाने पड़ते हैं। इसलिए जो धर्मात्मा हैं, धर्म-लाभ चाहते हैं, उन्हें सम्यक्त्व ग्रहण कर इस मिथ्यात्व शत्रुका नाश कर देना चाहिए। नहीं तो इस मिथ्यात्वसे उनके धर्माचार-दर्शन, ज्ञान और चारित्र आदि गुण, जो संसारके उत्तमोत्तम सुखके कारण हैं, जहरसे नष्ट होनेवाले दूधकी भाँति बहुत शीघ्र नष्ट हो जायेंगे। कारण यह मिथ्यात्व-शत्रु बड़ा ही दुर्जय है, पापका समुद्र है, संसारको दुःख देनेवाला है। इसे तो नष्ट करनेमें ही आत्म-हित है। इसके सिवा पाँच इन्द्रिय और मन इन छहोंकी स्वच्छन्द प्रवृत्ति और पृथ्वी, अप, तेज, वायु, वनस्पति और त्रस इन छहों प्रकारके जीवोंकी प्रमादसे विराधना-हिंसा, ये बारह अव्रत कहे जाते हैं। ये पापके खान हैं और संसारके बढ़ानेवाले हैं। इसलिए जो अपना आत्महित चाहते हैं, उन्हें व्रत, संयम आदिके द्वारा इन अवतोंको छोड़नेका यत्न करना चाहिए। ___संसारके बढ़ानेवाले पाँचों इन्द्रियोंके विषय भी हैं। सो जो सच्चे सुखकी इच्छा करते हैं, वे इन विषयरूपी चोरोंको वैराग्यकी