________________ सुदर्शन और मनोरमाके भव। [65 आर्यिकाके उपदेशपर उसकी बड़ी श्रद्धा होगई / उसने उसके उपदेशानुसार मांस-मदिरा आदिका स्वाना छोड़ दिया, त्रस जीवोंकी हिंसा करनी छोड़ दी और अपने अनुकूल व्रतोंको ग्रहण कर वह अब उन आर्यिकाओंके ही साथ रहने लगी। सुदर्शन, उनके साथ रहकर उसने जो पवित्रता लाभ की उससे और व्रत-पालनसे उसे जो पुण्यबन्ध हुआ उसके प्रभावसे वह शुभ परिणामोंसे मर कर यह तेरी रूप-सौभाग्यवती और बड़ी धर्मशील स्त्री मनोरमा हुई है और यही कारण है कि इसका तुझपर और तेरा इसपर अत्यधिक प्रेम है / सुदर्शन, ये प्रेम, मित्रता, शत्रुता आदि जितनी बाते हैं वे सब पूर्व जन्मके संस्कारसे हुआ करती हैं, इसलिए बुद्धिमानोंको इसमें आश्चर्य करनेकी कोई बात नहीं। ___इस प्रकार विमलवाहन मुनिराजके मुँहसे सुदर्शन अपने पुण्यपापके फलरूप पूर्व जन्मोंका वर्णन सुनकर संसार-दुःखके कारण पापाचरणसे बड़ा डरा और इसीलिए वह जिनदीक्षा लेनेको तैयार होगया। एक ग्वालने क्षुद्र कुलमें जन्मे मनुष्यने " णमो अरहंताणं " इस मंत्रकी आराधना की। उसके प्रभावसे वह बड़ा भारी सेठ हुआ, गुणी हुआ, महान् धीरजवान् हुआ, चरमांगधारी-उसी भवसे मोक्ष जानेवाला हुआ; और अन्तमें मोक्ष प्राप्तिके कारण वैराग्यको प्राप्त होकर मुनि होगया / तब भव्यजनो, तुम भी इस महान् पंच नमस्कार-मंत्रका मनोयोगपूर्वक ध्यान करो, जिससे तुम्हें मोक्षकी प्राप्ति हो सके।