________________ सुदर्शन-चरित। कितनोंने दस हजारकी। कुछ लोगोंने सब प्रकारकी बात-चीत करना छोड़कर मौनपूर्वक एक एक लाख जाप करनेका संकल्प किया / सुदर्शन, पूर्व भवमें तुम्हारी जो कुरंगी नामकी स्त्री थी, वह बुरे परिणामोंसे मरकर बनारसमें भैंस हुई / उस पर्यायमें उसने बड़ी बड़ी तकलीफें उठाई। तिर्यंचगतिके दुस्सह दुःखोंको चिर कालतक भोगा / फिर जब उसका पापकर्म कुछ हलका हुआ तो वह वहाँसे मरकर इसी चम्पानगरीमें साँवल नामके धोबीकी स्त्री यशोमतीके वत्सिनी नाम लड़की हुई। काललब्धिसे एक दिन उसे आर्यिकाओंका संघ मिल गया / उसने बड़ी श्रद्धा और भक्तिसे उन सब आर्यिकाओंकी वन्दना की। संघकी प्रधान आर्यिकाको उसकी दशापर बड़ी दया आई। उसने इससे कहा-बेटा, तुझे धर्मके ग्रहण करनेका सम्बन्ध अबतक न मिला / देख, यह उसी पापका फल है जो तू ऐसे दरिद्र, मदिरामांस खानेवाले, और पापके कारण नीच कुलमें पैदा हुई / इसलिए अब तुझे उचित है कि तू इस पवित्र धर्मको ग्रहण करे, जिससे तुझे इस झ्वमें सुख-सम्पत्ति और परभवमें अच्छी गति, अच्छा कुल और रूप-सौभाग्य प्राप्त हो। उस धर्मका संक्षेप स्वरूप है-पाँच अणुव्रत, तीन गुणत्रत और चार शिक्षाव्रत, इन बारह व्रतोंका पालना, रातमें भोजनका त्याग करना, उपवास करना, दान देना, पंच नमस्कार मंत्रकी आराधना करना और जैनधर्मपर विश्वास करना / इन पवित्र आचार-विचारोंसे तुझे धर्मकी प्राप्ति हो सकेगी।