________________ सुदर्शन और मनोरमाके भव / / 63 साधु हैं। इस प्रकार पाँचों परमेष्ठीके सब गुणोंसे युक्त यह मंत्र सब मंत्रोका महान् मंत्र है / इसकी उपमाको कोई मंत्र नहीं पा सकता / ऐसे महा मंत्ररूप अर्हन्त पदका ध्यान करनेसे यह सब सिद्धियोंको देता है। क्योंकि इसका ध्यान करनेसे पाँचों ही परमेष्ठीका ध्यान हो जाता है। सुदर्शन, जो मोक्षके सुखकी इच्छा करते हैं उन्हें इस अर्हन्त भगवान्के उच्च गुण-स्वरूप और सत्यके प्राप्त करानेवाले नमस्कार-गर्भित पवित्र मंत्रका . मन-वचन-कायके योगपूर्वक सब अवस्थाओंमें-पुखमें, दुखमें, भयमें, रास्तेमें, समुद्र में, घोर युद्ध में, पर्वतमें, आग लगनेपर, या आगके और कोई उपद्रवमें, सोते समय, सर्प-व्याघ्र आदि हिंसक जीवों द्वारा दिये गये कष्टमें, चोरोंके उपद्रवमें, असाध्य रोगमें, मृत्युके समय, या और किसी प्रकारके कष्ट या विघ्नोंके उपस्थित होनेपर-ध्यान करना चाहिए। यह महान् मंत्र है, इसका प्रभाव सबसे बढ़ा चढ़ा है / अर्हन्त भगवान्के सब उच्च गुण इसमें समाये हुए हैं / यह सत्यका प्राप्त करानेवाला है। इसलिए पापोंका नाश और मोक्षका सुख प्राप्त करनेके लिए इस मंत्रको हृदयसे और बचनसे कभी न भुलाना चाहिए-प्रतिदिन इसका ध्यान- आराधन करते रहना उचित हैकर्तव्य है। इस मंत्रका ऐसा उत्कृष्ट माहात्म्य सुनकर सुदर्शन, राजा और प्रजाजन बड़े खुश हुए। उनमेंसे कितनोंने इस महामंत्रकी एक हजार जाप प्रतिदिन करनेकी प्रतिज्ञा की, कितनोंने दो हजारकी, कितनोंने चार हजारकी और . .