________________ 62 ] सुदर्शन-चरित। चिन्तित वस्तुका देनेवाला है-इसलिए अमोल चिन्तामणि है, सब भोगोपभोगकी सामग्रीका देनेवाला है-इसलिए अक्षय निधि है और कामना किये हुए अर्थका देनेवाला है-इसलिए कामधेनु है / जैसे परमाणुसे कोई छोटा नहीं और आकाशसे कोई बड़ा नहीं, उसी भाँति इस महामंत्रके समान संसारमें कोई मंत्र नहीं, जो सब सिद्धियोंका देनेवाला हो / क्षुद्र विद्या और स्तंभनादिक जितने मंत्र यंत्र हैं, सब इस अर्हन्त भगवान्के ध्यानरूप मंत्रके प्रभावसे बे-कामके हो जाते हैं। इस मंत्रके प्रभावसे वश हुई मुक्तिश्री उस धर्मात्माको, जिसने इस मंत्रकी आराधना की है, कन्याकी तरह स्वयं वरती है-अपना स्वामी बनाती है-इस मंत्रका ध्यान करनेवाला अवश्य मोक्ष जाता है / तब स्वर्गकी देवकुमारियाँ उस पुरुषको चाहें तो इसमें आश्चर्य क्या / मतलब यह कि इस मंत्रका मुख्य फल मोक्ष है और स्वर्गीय सुखोंका प्राप्त होना गौण फल है। मेरी समझके अनुसार इस परममंत्रका जो प्रभाव है उसे पूर्णपने यदि कोई कह सकते हैं तो वे केवली भगवान् , और कोई कहने समर्थ नहीं / सुदर्शन, इस मंत्रके ' अर्हन्त / पदमें एक और विशेषता है। वह यह कि इसमें पाँचों ही परमेष्ठी गर्भित हैं। सकल परमात्मा अर्हन्त भगवान् तो सिद्ध हैं, वे पंचाचारका उपदेश देते हैं इसलिए आचार्य हैं, दिव्यध्वनि द्वारा सब पदार्थोंका स्वरूप कहते हैं-इसलिए उपाध्याय हैं और मुक्तिरूपी स्त्रीकी साधना करनेसे परम