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________________ सुदर्शन और मनोरमाके भव। [61 धर्मात्मा पुरुषोंकी दासी हो जाती है / इन्द्र, अहमिंद्र, चक्रवर्ती, बलभद्र आदि जितने महान् पद हैं वे सब इस मंत्रका स्मरण करनेवाले बड़ी आसानीसे लाभ करते हैं / धर्मात्मा पुरुषोंको स्वर्ग या. चक्रवर्ती आदिकी सम्पत्ति बड़ी उत्कण्ठाके साथ वरती है। विन, दुष्ट राजा, भूत-पिशाच, शाकिनी-डाकिनी आदिके द्वारा दिये गये कष्ट-वगैरह, मंत्रसे कीले हुए सर्पकी तरह सत्पुरुषोंको कभी नहीं सता सकते / अनेक प्रकारकी तकलीफें देनेवाले महा पाप इस मंत्रकी आराधना करनेवालेके इस तरह नष्ट होते हैं जैसे सूर्यसे अंधकार / सोना जैसे आगसे शुद्धि लाभ करता है उसी तरह जो लोग पापी हैं-कलंकित हैं वे इस मंत्रके ध्यानरूपी अग्निसे परम शुद्धि लाभ करते हैं। इस मंत्रके प्रभावसे शत्रु मित्र बन जाते हैं; दुष्ट, क्रूर भूत-पिशाच आदि वश हो जाते है; भयंकर सर्प गलेका हार हो जाता है, कितना ही तेज विष क्यों न हो वह फौरन उतर जाता है और तलवार फूलोंकी माला हो जाती है। इसमें कोई आश्चर्य नहीं जो इस महामंत्रकी शक्तिसे विपत्तियाँ सम्पत्तिके रूपमें और दुःख सुखके रूपमें परिणत हो जाय और सिंह, व्याघ्र आदि भयंकर जीव वश हो जायँ / इस मंत्रका प्रभाव तो देखिए, जिन्होंने जीवनभर सातों व्यसनोंका सेवन किया; हिंसा, झूठ, चौरी आदि पापोंको किया वे लोग भी इस मंत्रके स्मरणसे-केवल मृत्यु समय प्राप्त हुए मंत्रका ध्यान कर स्वर्ग गये, कितने मोक्ष गये। सुदर्शन, यह मंत्र कल्पनाके अनुसार तमाम सुख देनेवाला है-इसलिए कल्पवृक्ष है,
SR No.022755
Book TitleSudarshan Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kashliwal
PublisherHindi Jain Sahitya Prasarak Karyalay
Publication Year
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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