________________ सुदर्शन और मनोरमाके भव / ___ मैं चाहता हूँ कि तुझसे बुद्धिमान् धर्मको सदा धारण करेंउसका आश्रय लें। धर्मके द्वारा मोक्ष-मार्गका आचरण करें / धर्म प्राप्तिके लिए दीक्षा लें। तुझे खूब याद रखना चाहिए कि एक धर्मको छोड़कर कोई तुझे मोक्षका सुख प्राप्त नहीं करा सकता। इसलिए तू धर्मके मूलको प्राप्त करनेका यत्न कर--धर्ममें सदा स्थिर रह। और धर्मसे यह प्रार्थना कर कि हे धर्म, तू मुझे मोक्ष प्राप्त करा / क्योंकि यही धर्म इन्द्र, चक्रवर्ती आदिका पद और मोक्षका देनेवाला है, अनन्त गुणोंका स्थान और संसारका भ्रमण मिटानेवाला है, पापोंका नाश करनेवाला और सब सुखोंका देनेवाला है, दुःखोंका नाशक और मनचाही वस्तुओंको देनेवाला है। इस धर्मको बड़े आदरसे मैं स्वीकार करता हूँ। वह मुझे मोक्षका सुख दे / पाँचवाँ परिच्छेद सुदर्शन और मनोरमाके भव // में सुख-मोक्ष प्राप्तिके लिए पाँचों परमेष्ठीको नमस्कार करता हूँ। ___ वे धर्मतीर्थक चलानेवाले, जगत्पूज्य और सब सुखोंके देनेवाले हैं। सुदर्शन विमलवाहन मुनिराजके मुख-चन्द्रमासे झरा धर्मामृत पी-कर बहुत सन्तुष्ट हुआ / इसके बाद उसने उनसे पूछा-योगिराज, मैं जानता हूँ कि स्नेह-प्रेम धर्ममें बाधा करनेवाला है,