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________________ 54 ] सुदर्शन-चरित। पर तो भी न जाने क्यों मनोरमापर मेरा इतना अधिक प्रेम है ? इसका कारण कृपाकर आप बतलाइए / और यह भी बतलाइए कि मैं किस पुण्यके उदयसे ऐसा धनी, सुन्दर और कामदेव-पदका धारी हुआ ? सुदर्शनके इस प्रश्नको सुनकर मुनिराजने अपनी दिव्य वाणी द्वारा पुण्य-पापका फल बतलाते हुए यों कहना आरंभ किया। इसलिए कि उससे भव्यजनोंका उपकार हो। सुदर्शन, तेरी पूर्व जन्मकी कथा बड़ी ही वैराग्य पैदा करनेवाली है, इसलिए तू उसे जरा सावधान मनसे सुन / ( राजा वगैरहकी ओर इशारा करके) और आप लोग भी जरा अपने मनको इधर लगावें / "इस भरतक्षेत्रमें बसे हुए आर्यखण्डमें बन्ध्य नाम एक प्रसिद्ध देश है / धर्म-साधन और सुख-साधनके कारणोंसे वह युक्त है। उसमें काशीकोशल नामका एक बड़ा ही सुन्दर नगर था। उसके राजाका नाम भूपाल था। भूपालकी रानीका नाम वसुंधरा था। उनके एक लड़का था। उसका नाम था लोकपाल / वह बड़ा प्रतापी था। ___ एक दिन राजा राजसभामें सिंहासनपर बैठे हुए थे। उनके पास उनका पुत्र लोकपाल तथा मंत्री आदि भी बैठे हुए थे। इतनेमें राजमहलके खास दरवाजेपर राजाने प्रजाके कुछ लोगोंको कष्टसे रोते-गुहार मचाते हुए देखा / देखकर राजाने अपने पास ही बैठे हुए अनन्तबुद्धि मंत्रीको पूछा-देखो तो ये लोग ऐसे क्यों चिल्ला रहे हैं ? अनन्तबुद्धिने राजासे कहा-महाराज, यहाँसे दक्षिणकी ओर विन्ध्यगिरि नामका बठ हुए थे। लोकपाल तथा थे। इतने
SR No.022755
Book TitleSudarshan Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kashliwal
PublisherHindi Jain Sahitya Prasarak Karyalay
Publication Year
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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