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________________ 108 ] सुदर्शन-चरित / xxxwww इस प्रकार नमस्कार-गर्भित केवल एक अर्हन्त भगवान्के नामस्मरणरूप पदके प्रभावसे अर्थात् ' णमो अरहंताणं' इस पदके ध्यानसे एक सुभग नाम ग्वाला दूसरे जन्ममें जगका आदर-पात्र, बड़ा भारी धनी, धर्मबुद्धि और मुक्ति-स्त्रीका प्यारा सुदर्शन हुआ। जो संसारके बुद्धिमानों द्वारा स्तुति किया गया, जो अनन्त गुणोंका समुद्र हुआ और जो मुक्ति-वधूका प्यारा प्रेमी बना उस सुदर्शनको मैं नमस्कार करता हूँ; वह मुझे शिवका देनेवाला हो / ___मनुष्य और देवों द्वारा किये गये उपद्रवोंसे जो चलायमान न होकर पर्वत समान तपमें अचल बना रहा और जिसने कैवल्य प्राप्तकर मुक्ति लाभ की वह सुदर्शन मुझे शक्ति दे / जो संसारमें परम सुन्दर कामदेव, धीर, दक्ष और प्रतापी हुआ, जिसने सब परिषहों-कष्टोंपर विजय प्राप्त की उस सुदर्शनको परमार्थ सिद्धिके लिए मैं वन्दना करता हूँ। केवलज्ञानके समय जिन्हें इन्द्र, नागेन्द्र, नरेन्द्र, आदिने विभूषित किया, जिनका जन्म वैश्यकुलमें हुआ, जो बड़े धर्मात्मा और दिव्य सुन्दरतासे युक्त थे, जो अनन्त गुणोंके समुद्र और महा बलवान् थे, जो बड़े ही पवित्र थे और जिनने कर्म-पर्वतको तप-वज्रसे तोड़कर निर्वाणरूपी सुख-रत्न प्राप्त किया उन मुनि-श्रेष्ठ सुदर्शनको मैं नमस्कार करता हूँ और उनकी स्तुति करता हूँ। वे मुझे अपनीसी शक्ति दें। ____ इस प्रकार भक्तिसे जिनकी मैंने स्तुति की, जिसने चंचल स्त्रियोंपर असाधारण विनय प्राप्त कर अपनी दृढ़ चारित्रता प्रगट की, जो
SR No.022755
Book TitleSudarshan Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kashliwal
PublisherHindi Jain Sahitya Prasarak Karyalay
Publication Year
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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