________________ सुदर्शनका निर्वाण-गमन / [ 107 प्राप्त करानेवाला है / इस ध्यानके पहले समयमें भगवान्ने बहत्तर प्रकृतियोंका नाश किया और अन्तिम समयमें तेरह प्रकृतियोंका / इस प्रकार सुदर्शन केवली भगवान्ने सब कर्म और तीनों शरीरका नाश कर अनन्त-दर्शन आदि आठ श्रेष्ठ गुणोंको प्राप्त किया। वे संसार वन्दनीय हुए / पौष सुदी पंचमीको भगवान्ने, स्वभावसे ऊँचेकी ओर जानेवाले एरंडके बीजकी तरह ऊर्ध्वगमन कर मोक्ष लाभ किया / वहाँ वे सिद्ध भगवान् नित्य, अपने आत्मानन्दसे प्राप्त हुए, घट-बढ़ रहित, बाधा-हीन, निरुपम, अतीन्द्रिय, दुःखरहित, और अन्य द्रव्योंकी सहायरहित लोकाग्र-भागका अनन्त-सुख भोगते हैं और अनन्त कालतक भोगेंगे / इन्द्रादिक देवतों, विद्याधरों चक्रवर्तियों तथा भोगभूमिमें उत्पन्न लोगोंने जो सुख भोगा, जो सुख वे भोगते हैं तथा आगे भोगेंगे उस सब सुखको मिलाकर इकट्ठा कर देनेपर भी वह सिद्धोंके एक समयमें भोगे हुए सुखकी भी तुलना नहीं कर सकता। उस सुखका शब्दों द्वारा वर्णन नहीं किया जा सकता / वह वचनोंके अगोचर है / पहले जो धात्रीवाहन आदि राजा लोग मुनि हुए थे उनमें कितने तप द्वारा कर्मोंका नाशकर मोक्ष चले गये। कितने अपनी शक्तिके अनुसार की हुई तपस्यासे सौधर्म स्वर्गसे लेकर सर्वार्थसिद्धि गये / कितनी शुद्ध सम्यग्दर्शनको धारण करनेवाली आर्यिकायें तपके प्रभावसे निंद्य स्त्रीलिंगका नाशकर सौधर्म स्वर्गमें गई; / कितनी अच्युत स्वर्गको गई / कितनी अच्युत स्वर्गमें देव हुई और कितनी उसी स्वर्गमें सुख देनेवाली देवियाँ हुई।