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________________ 106 ] सुदर्शन-चरित / www wimmmmmmmmmmmmwwwnwww. ईसके बाद देवतों, चक्रवतियों, विद्याधरों आदि द्वारा सेवनीय सर्वज्ञ सुदर्शन मुनिके चरणोंको नमस्कार कर उन सबने अपने अपने योग्य व्रत ग्रहण किये। सुदर्शनकी स्त्री मनोरमा सुदर्शनको केवलज्ञान हुआ सुनकर अपने पुत्रके मना करनेपर भी धर्म-सिद्धिके लिए सुदर्शन केवलीके पास आई / उन्हें नमस्कार कर उसने भगवान्का उपदेश सुना / उससे उसे बड़ा वैराग्य होगया। उसने मोक्ष प्राप्तिकी कारण जिनदीक्षा स्वीकार करली। इसके बाद सुदर्शन केवली भव्यजनोंको बोध देने और मोक्षमार्गका प्रचार करनेके लिए चारों संघोंके साथ नाना देश और नगरोंमें विहार करने लगे। उन लोकनाथ भगवान्ने अपने धर्मोपदेशामृतसे अनेक जनोंको सन्तुष्ट किया, अनेकोंको मोक्षमार्गमें लगाया, अनकोंको अनमोल रत्नत्रयसे विभूषित किया, अनेकोंको जगत्का हित करनेवाले सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान ये महान् रत्न दिये, अनेकोंको धर्म-रत्न दिया और अनकोंको तप-रत्न दिया। इस प्रकार सब संसारके जीवोंको महान् दान देकर भगवान् सुदर्शन कल्पवृक्षकी तरह शोभाको प्राप्त हुए। अन्तमें भगवान्ने योग-निरोध कर धर्मोपदेश करना छोड़ दिया और शिव-सुखकी प्राप्तिके लिए चौदहवाँ गुणस्थान प्राप्त कर नि:क्रिय अवस्था धारण करली / इसके बाद वे शुक्ल यानके तीसरे पायेको छोड़कर अन्तिम व्युपरतक्रियानिवृत्ति नाम ध्यान करने लगे। यह ध्यान कर्म-शत्रु और शरीरादिकका नाश करनेवाला तथा मोक्षका
SR No.022755
Book TitleSudarshan Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kashliwal
PublisherHindi Jain Sahitya Prasarak Karyalay
Publication Year
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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