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________________ 104 ] सुदर्शन-चरित / सम्बन्ध नहीं होता। इस अवस्थामें आत्मा अनन्त गुणका धारी हो जाता है / इन सात तत्वोंके शंकादि दोष रहित श्रद्धानको सम्यग्दशन कहते हैं। यह सम्यग्दर्शन मोक्ष प्राप्त करनेकी पहली सीढ़ी है। पदार्थोका जैसा स्वरूप है उसे वैसा जानना सम्यग्ज्ञान है। यह ज्ञान संसारसे अज्ञानरूपी अन्धकारको नष्ट करनेवाला दीपक है / हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील आदि पाँच पापोंके छोड़ने तथा पाँच समिति और तीन गुप्तिके पालनको सम्यक्चारित्र कहते हैं। इस प्रकार सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र इन तीनोंको व्यवहार रत्नत्रय कहते हैं। यह सब प्रकारके अभ्युदय और रिद्धि-सिद्धिका देनेवाला है। इसके फलसे आत्मा सर्वार्थसिद्धि लाभ करता है। यह हुआ व्यवहार रत्नत्रय / और निश्चय रत्नत्रयका स्वरूप इस प्रकार है / . ज्ञानी पुरुष अनन्त गुणमय अपने आत्माका जो हृदयमें श्रद्धान करते हैं वह निश्चय सम्यग्दर्शन है, केवलज्ञानस्वरूप सिद्ध समान आत्माका जो अनुभव करते हैं-उसे जानते हैं वह निश्चय ज्ञान है और परम-आनन्दके समुद्ररूप अपने आत्माका हृदयमें आचरण करते हैं--पर पदार्थोंमें राग-द्वेष करते हुए आत्माको उस ओरसे हटा कर अपने आपमें स्थिर करते हैं वह निश्चय सम्यक् चारित्र है / यह निश्चय रत्नत्रय उसी भवसे मोक्ष प्राप्तिका कारण और बाह्य चिन्ताओंसे रहित सब गुणोंका स्थान है। इस प्रकार रत्नत्रयके दो भेद होनेसे मोक्षमार्गके भी दो भेद होगये। मोक्षकी इच्छा करनेवालेको यह रत्नत्रय धारण करना चाहिए / यह मुक्तिस्त्रीका एक महान् वशीकरण है / मोहका नाश कर जो भव्यजन
SR No.022755
Book TitleSudarshan Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kashliwal
PublisherHindi Jain Sahitya Prasarak Karyalay
Publication Year
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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