________________ सुदर्शनका निर्वाण-गमन / [103 घड़ी, मिनिट, सैंकेंड-आदि रूप है। और निश्चय-काल परिवर्तन रूप है। वह पुद्गलादि द्रव्योंके परिणमनसे जाना जाता है। अर्थात् उनकी जो समय समयमें जीर्णता नवीनता रूप पयार्ये बदला करती हैं वे ही 'निश्चयकाल कोई खास द्रव्य है', ऐसी विश्वास कराती है। आत्रव-मिथ्यात्व, अविरत, प्रमाद, कषाय, आदि द्वारा जो कर्म आते हैं वह आस्रव है / यह संसारमें जीवोंको अनन्त काल तक भ्रमण कराता है। बन्ध-कर्म और आत्माका परस्परमें एकक्षेत्ररूप होना बन्ध है। जैसे दूधमें पानी मिला देनेसे उन दोनोंकी पृथक् पृथक् सत्ता नहीं जान पड़ती / बन्धके-प्रकृतिबन्ध, प्रदेशबंध, स्थितिबन्ध और अनुभागबन्ध ऐसे चार भेद हैं। यह बन्ध सब दुःखोंका कारण है। संवर-आत्म-ध्यान, व्रत, तप आदि द्वारा कके आगमनको रोक देनेको संवर कहते है। यह मोक्षका कारण है, इसलिए इसे प्राप्त करनेका यत्न करना चाहिए। निर्जरा-पूर्वस्थित कर्भीका थोड़ा थोड़ा क्षय होनेको निर्जरा कहते हैं। इसके दो भेद हैं / सविपाकनिर्जरा और अविपाकनिर्जरा। कर्म अपना फल देकर जो नष्ट हो वह सविपाकनिर्जरा है और तपस्या द्वारा जो कर्म नष्ट किये जायें वह अविपाकनिर्जरा है। ___मोक्ष-आत्माके साथ जो कर्मोका सम्बन्ध हो रहा था उसका सर्वथा नष्ट हो जाना- आत्मासे कर्मोका सदाके लिए सम्बन्ध छूट जाना वह मोक्ष है। कर्मोका सम्बन्ध छूटनेसे आत्मा अत्यन्त शुद्ध हो जाता है। फिर कभी उसके साथ कर्मोका