________________ 102 ] सुदर्शन-चरित / किया जाता है। मन-वचन- कामकी क्रियाओंको रोका जाता है, और उत्तम-क्षमा, उत्तम-मार्दव आदि धर्मके दस परम लक्षणोंका पालन किया जाता है। मोक्षका साक्षात् प्राप्त करानेवाला यही धर्म हैं / इसे संसार-शरीर-भोगादिसे सर्वथा मोह छोड़े हुए मुनि ही धारण कर सकते हैं / जो रत्नत्रय-सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्रके धारी इस यति-धर्मको धारण करते हैं वे संसार-पूज्य होकर अन्तमें मोक्ष लक्ष्मीके स्वामी होते हैं। जिन शासनमें सात तत्व कहे गये हैं। वे हैं-जीव, अजीव, आस्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा और मोक्ष / इनका यथार्थ श्रद्धान सम्यग्दर्शनका कारण है / इनका संक्षेप स्वरूप इस प्रकार है____ जीव उसे कहते हैं-जिसमें चेतना-जानना और देखना पाया जाय। जो व्यवहारसे दस प्राणों और निश्चयसे चार प्राणोंका धारक हो, उपयोगमय हो, अनादि हो, अपने कर्मोका कर्ता और भोक्ता हो तथा अनन्त गुणोंका धारक हो / ___अजीव उसे कहते हैं जिसमें चेतना-देखना-जानना न पाया जाय। इसके पाँच भेद हैं / पुद्गल, धर्म, अधर्म आकाश और काल / पुद्गल वह है-जिसमें स्पर्श, रस, गन्ध और वर्ण ये चार बातें हों। धर्म वह है-जो जीव और पुद्गलोंको चलनेमें सहायता दे। जैसे मछलीको जल। अधर्म वह है जो उक्त दोनों द्रव्योंको ठहरानेमें सहायता दे। जैसे रास्तागीरको वृक्षोंकी छाया। आकाश उसे कहते हैं-जो सब द्रव्योंको स्थान-दान दे / कालके दो भेद हैं। व्यवहारकाल और निश्चय-काल। व्यवहार-काल वर्ष, महीना, दिन, प्रहर,