________________ 100 ] सुदर्शन-चरित। अल्पज्ञोंकी, जो एक बहुत ही साधारण ज्ञान रखते हैं, क्या चली। कृपाके भंडार, यही समझ हमने आपकी स्तुतिके लिए अधिक कष्ट उठाना उचित न समझा / आप गुणोंके समुद्र हैं, अनन्त-चारित्र और अनन्त-सुखके धारक हैं, दिव्यरूपी और परमात्मा हैं-सबसे उत्कृष्ट हैं, मुक्ति-सुन्दरीके स्वामी और आन्दके देनेवाले हैं। इसलिए भक्तिपूर्वक आपके चरण कमलोंको हम नमस्कार करते हैं। गुणसागर, हमने जो आपकी स्तुति की वह इस आशासे नहीं कि आप हमें संसारकी उच्चसे उच्च धन-सम्पत्ति, ऐश्वर्य-वैभव दें; किन्तु हम चाहते हैं आपकी सरीखी आत्मशक्ति, जिसके द्वारा मोक्ष-मागको सुख-साध्य बना सकें। कृपाकर आप हमें यही शक्ति भीखमें दें, यह हमारी सानुरोध सानुनय आपसे वार वार प्रार्थना है। देवता लोग इस प्रकार भगवान्की स्तुति-प्रार्थना कर धर्मोपदेश सुननेके लिए भगवान्के चारों ओर बैठ गये / तव भगवान् सन्मार्गकी प्रवृत्तिके लिए दिव्यवनि द्वारा धर्मतत्वका, जिसमें कि सब पदार्थ गर्भित हैं, उपदेश करने लगे। वे बोले-भव्यजनो, तुम आत्महित करना चाहते हो, तो इन विषयरूपी चोरोंको नष्टकर धर्मका पालन करो / यह धर्म स्वर्ग और मोक्ष-लक्ष्मीकी प्राप्तिका वशीकरण मंत्र है। इस धर्मके दो भेद हैं। पहला यतिधर्म और दूसरा श्रावकधर्म या गृहस्थधर्म / श्रावकधर्म सुख-साध्य है और स्वर्गका कारण है / मुनिधर्म कष्ट साध्य है और साक्षात् मोक्षका कारण है। मुनिधर्ममें किसी प्रकारका आरंभ-सारंभ, बणिज-व्यापार नहीं किया जाता।