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________________ सुदर्शनका निर्वाण-गमन। [99 सुवर्ण-रत्नमयी झारीमें भरे जल, मलयागिरि चन्दन, मोतियोंके अक्षत, कल्पवृक्षोंके फूल, अमृतके बने नैवेद्य, मणिमय प्रदीप, दशाङ्ग धूप, सुन्दर और सुगन्धित फल आदि स्वर्गीय द्रव्यों द्वारा भगवान्के चरण-कमलोंकी पूजा की, फूलोंकी वर्षा की, नृत्य किया, गाया, बजाया और खूब आनन्द-उत्सव मनाया। उनका पूजा द्रव्य, उनका गीत संगीत देखकर लोगोंको आश्चर्य होता था। उनकी सभी बातें निरुपम थीं। भक्तिके वश हुए वे सब देवगण पूजन पूरी हुए बाद भगवान्को नमस्कार कर उनकी स्तुति करने लगे __ भगवन, आप धन्य है। आपकी यह अद्भुत धीरता हमें आश्चर्य पैदा कर रही है। आप अनन्त कष्टोंके जीतनेवाले महान् पर्वत हैं। प्रभो, आप ही पूज्योंके पूज्य, गुरुओंके गुरु, ज्ञानियोंके ज्ञानी, देवोंके देव, योगियोंके योगी, तपस्वियोंके तपस्वी, तेजस्वियोंके तेजस्वी, गुणियोंके गुणी, विजेताओंके विजेता, और प्रतापियोंके प्रतापी हैं। स्वामी, आप ही हमारे मनोरथोंके पूरे करनेवाले और दिव्य रूपके धारी हैं; संसारके स्वामी और भव्यजनोंके हितमें तत्पर रहते हैं; केवलज्ञानरूपी नेत्रसे युक्त और संसारमें आनन्दके बढ़ानेवाले हैं; सब देवगण तथा चक्रवर्ती आदि महा पुरुषों द्वारा पूज्य और भव्यजनोंको संसार-समुद्रसे पार करनेवाले परम बन्धु हैं। भगवन्, आप ही हमें इन्द्रिय-सुख एवं शिव-सुखके देनेवाले हैं। प्रभो, आपके समान उपसर्गोका जीतनेवाला धीर इस समय संसारमें कोई नहीं / नाथ, यही क्या किन्तु आपमें तो अनन्त गुण हैं। उनका वर्णन गगधर भगवान् तक तो कर ही नहीं सकते तब हमसे
SR No.022755
Book TitleSudarshan Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kashliwal
PublisherHindi Jain Sahitya Prasarak Karyalay
Publication Year
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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